मानव शरीर एक सर्वांगपूर्ण यंत्र है

November 1968

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चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग के दो नवयुवकों के बारे में एक बड़ी विचित्र बात सुनने को आई। यह कि जब दोनों जोर जोर से साँस लेते हैं तो उनके शरीर के अन्दर से विचित्र प्रकार की ध्वनियां और संगीत आने लगता है, जो किसी समीपवर्ती रेडियो स्टेशन का ब्राडकास्ट प्रोग्राम भी हो सकता है। दोनों युवक जोर जोर से साँस लेते समय किसी लाउड-स्पीकर के सिरे का स्पर्श करते थे तो आवाज इतनी ऊँची हो जाती थी कि सुनने वालों को ऐसा लगता था, जैसे कोई रेडियो पूरा खोल दिया गया हो।

दोनों युवक एक फैक्टरी में काम करते थे। डाक्टरों ने उनकी पूरी शरीर परीक्षा की पर कोई कारण न बता सके। अनेक पत्रकारों ने विस्तृत छानबीन की पर निराशा ही हाथ लगी। युवकों के शरीर से संगीत ध्वनियों के प्रसारण का कोई कारण नहीं जाना जा सका।

नाद बिन्दु उपनिषद् में कुछ ऐसी साधनाओं का प्रकरण है, जिनके आरम्भिक अभ्यास में कई तरह के नाद सुनाई देने का वर्णन है। पहले यह ध्वनियां तीव्र होती हैं, फिर धीमी होती जाती हैं, यह ध्वनियाँ झींगुर, झरना, भ्रमर, वीणा, वंशी, घुंघरू आदि की तरह सुनाई देती हैं। उपनिषदकार का मत है कि जिस तरह भ्रमर को फूलों में रस मिलता है, नाद-योग के साधक को चित्तवृत्तियाँ उसी प्रकार उस मधुर संगीत का आनन्द लेती और विषय वासनाओं को भूल जाती हैं। जब शब्दों के साथ मिला हुआ नाद अक्षर-ब्रह्म में लीन हो जाता है, तो शब्द नहीं सुनाई देते वरन् एक अनिवर्चनीय आनन्द की अनुभूति होती है।

इस तरह के अंतरंग नाद का इन बाह्य जगत् में घटित होने वाली घटनाओं के साथ कितना सम्बन्ध है, इसके पूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण में तो अभी कुछ विलम्ब है पर वैज्ञानिक ऐसे तत्वों की उपस्थिति शरीर में अनुभव करने लगे हैं, जिनके जागरण से निकटवर्ती और दूरवर्ती प्रसारणों को अपने भीतर ही भीतर इस तरह सुना और जाना जा सकता है, जैसे कोई रेडियो सुन रहे हों।

कुछ दिन पूर्व शिकागो में एक वकील का आश्चर्यजनक समाचार छपा कि जब वह अपने बिस्तर के पास जाता है, तो उसे अजीब तरह की संगीत की आवाजें सुनाई देती हैं। अभी इसी आश्चर्य का विश्लेषण नहीं हो पाया था कि एक ऐसे व्यक्ति का पता चला है, जिसे चलते-फिरते सर्वत्र संगीत ध्वनियाँ सुनाई दिया करती थीं। एक मनोवैज्ञानिक ने उसकी विस्तृत खोज की। उसने बताया कि यह युवक एक ऐसे कारखाने में काम करता है, जहाँ कई प्रकार की वस्तुओं में निकिल की पालिश की जाती है। निकिल के कुछ कण साँस के द्वारा शरीर में चले जाते होंगे, कुछ दांतों में चिपक जाते होंगे और आपस में इस तरह सम्बन्ध स्थापित करते होंगे, जिससे विद्युत तरंगें पैदा होने लगती होंगी और यह तरंगें किसी निकटवर्ती रेडियो स्टेशन के प्रसारणों को पकड़ने लगती होंगी। उसी से यह विचित्र ध्वनि सुनाई देने लगती होगी।

इससे भी विचित्र ध्वनियों की कई घटनायें देश-विदेश में घटित हुई हैं, जिनसे यह रहस्य और भी पेचीदा हो जाता है। विश्व विख्यात पर्यटक बर्ट्रेण्ड टामस ने एक बार अरब रेगिस्तान की यात्रा की तो उन्हें कुछ ऐसे बालू के टीले मिले जो गाते थे और उनके गाने की ध्वनियाँ इतनी स्पष्ट और ऊँची होती थीं कि काफी दूर बैठ कर भी उन्हें मजे से सुना जा सकता था। यात्रा-संस्मरण में टामस ने लिखा है कि यह मधुर-संगीत कई तरह के वाद्ययंत्रों से संयुक्त होता था। कभी ढोलक की आवाज आती थी, कभी वीणा की सी झंकार।

सहारा के रोने वाले टीलों की कथा भी कुछ ऐसी ही है। कैलीफोर्निया में भी बालू के कुछ ऐसे टीले हैं, जो गाते हैं। हवाई द्वीप का एक टीला कुत्ते की सी आवाज में भौंकता है। दक्षिण अफ्रीका में कुछ ऐसी रहस्यमय ड़ड़ड़ड़ भीतें हैं, वह अट्टहास तक करती सुनी गई हैं। योरोप में कुछ ऐसे समुद्र तट हैं, जहाँ यात्री मधुर संगीत ध्वनियों का रसास्वादन करते हैं। लंकाशायर के सेण्ट एनीके समुद्रीतट की बालू को एक विशेष प्रकार से दबाया गया तो उससे विचित्र तरह की ध्वनियां प्रसारित हुईं। वैज्ञानिकों ने इन सब रहस्यों का पता लगाने की चेष्टा की पर अभी तक वे इतना ही जान पाये हैं कि प्रकृति में बालू की तरह के कुछ ऐसे कण हैं, जो परस्पर संघात से प्राकृतिक ध्वनियाँ निकालते हैं।

एक बार कैलीफोर्निया की एक स्त्री भोजन पकाने जा रही थी, अभी वह उसकी तैयारी कर ही रही थी, चूल्हे से विचित्र प्रकार के गाने की ध्वनि निकलने लगी। गाना पूरा हो गया, उसके साथ ही ध्वनि आनी भी बन्द हो गई। न्यूयार्क में एक बार बहुत से लोग रेडियो प्रोग्राम सुन रहे थे, एकाएक संगीत ध्वनि तो बन्द हो गई और दो महिलाओं की ऊँची-ऊँची आवाज में बातें आने लगीं। रेडियो स्टेशन से पूछा गया तो पता चला कि वहाँ से केवल नियम-बद्ध संगीत ही प्रसारित हुआ है। बीच की आवाज कहाँ से आई यह किसी को पता नहीं है।

चेकोस्लोवाकिया की एक नदी में कुछ लोग स्नान कर रहे थे। तभी सामने से कुछ मधुर संगीत सुनाई देने लगा। लोगों ने छान मारा पर पता न चला कि कौन और कहाँ से गा रहा है, जबकि आवाज उनके पास ही हो रही थी। उस स्थान पर कुछ समय पूर्व कुछ सिपाही दिया गया कि उन सिपाहियों की मृतात्मायें गा रही होंगी।

अहमदनगर जिले में प्रवरा नदी के तट पर सतराता सोनगाँव में बने एक शिव-मन्दिर से आने वाली संस्कृत आवाज को बहुत से लोगों ने जा जाकर सुना। यह संगीत-मय ध्वनि शिवलिंग पर डाले जाने वाले जल की निकासी के लिये बनाई गई नाली से आती थी। पूना के 80 वर्षीय इतिहासज्ञ श्री डी. पी. पोद्दार ने भी इस विचित्र ध्वनि की पुष्टि की है और आगे अन्वेषण कराये जाने का सुझाव दिया है।

जैसलमेर में भी कुछ बालू के टीले पाये जाते हैं, जहाँ से कराहने आदि की कई तरह की ध्वनियाँ सुनी गई हैं। वहाँ के निवासियों का कहना है कि यह आवाजें इन टीलों में दबी प्रेतात्माओं की आवाजें हैं।

इस तरह की अनेक खबरें पढ़, सुनकर हर्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनो-वैज्ञानिक प्रयोगशाला के प्रोफेसर स्मिथ ने इस सम्बन्ध में विस्तृत अन्वेषण करने का निश्चय किया। उन्होंने मानवीय शरीर के बारे में यह निष्कर्ष निकाला कि सामान्य मनुष्य विद्युत और विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों के मिश्रण से बना है। किन्हीं ऐसे क्रिस्टल का उनसे संयोग होता होगा, जो रेडियो स्टेशनों के प्रसारणों को पकड़ने लगते होंगे। उन्होंने एक प्रयोग किया। अपने कान में नमक का घोल डाला और उसमें एक तार चिपका दिया। तार का दूसरा सिरा दूसरे कान में डाला। उससे उन्हें निकटवर्ती रेडियो स्टेशन के प्रोग्राम सुनाई देने लगे। यह तो एक प्रयोग था, पर उससे इस समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ कि आखिर पदार्थों के संगीत ध्वनियां क्यों आती हैं?

कुछ वैज्ञानिकों ने इन रहस्यपूर्ण संगीत ध्वनियों का कारण रेडियो के शार्टवेव ट्रान्समीटरों को बताया है। उनका विश्वास है कि इस तरह के रहस्य भविष्य में और भी बढ़ सकते हैं। कुछ हद तक बात ठीक भी है। पाश्चात्य देशों में जहाँ यान्त्रिक जीवन की बहुतायत है, इस तरह की घटनायें बहुत बढ़ गई हैं। शिकागो में एक महिला ने पुलिस को रिपोर्ट दी है कि वह जैसे ही अपने रसोई घर का दरवाजा खोलती है, उसके विद्युत चालित चूल्हे से एक विशेष प्रकार की संगीत ध्वनि आने लगती है। दरवाजा बन्द करते ही संगीत भी बन्द हो जाता है। इसकी इंजीनियरों ने जाँच की तो पाया कि न तो पास में कोई शार्टवेव ट्रान्समीटर है और न ही बगल के किसी रेडियो से ध्वनि पकड़ी जा रही है, क्योंकि जाँच करते समय पास-पड़ोस के तमाम सेट बन्द करा दिये गये थे।

बिजली के यन्त्रों से इस तरह की ध्वनियाँ अधिक आती हैं, इसलिये यह रहस्य तात्विक है, ऐसा तो समझा जा रहा है पर अभी यथार्थ तथ्य पकड़ में नहीं आ रहे।

सेण्ट लुईस में एक बार एक रात्रि भोज का आयोजन किया गया। जैसे ही संगीतकारों ने वाद्य-यन्त्र उठाये कि उनसे ताजा खबरें प्रसारित होने लगीं। इससे आयोजन के सारे कार्यक्रम ही फेल हो गये। नाइरियाल की एक स्त्री ने बताया कि उसके स्नान करने के टब से गाने की ध्वनियां आती हैं। एलवर्टा के एक किसान का कहना है कि जब वह अपने कुएँ के ऊपर पड़ी हुई लोहे की चादर को हटाता है तो कुएँ के तल से संगीत सुनाई देने लगता है। पुलिस को सन्देह हुआ कि किसान ने कहीं रेडियो छुपाया होगा। इसलिये इंच इंच जमीन की जाँच कर ली। पड़ोसियों के रेडियो भी बरामद कर लिये पर जैसे ही उस लोहे की चादर को हटाया गया, आवाज बार-बार सुनाई दी। और अन्ततः उस समस्या का कोई हल निकाला नहीं जा सका।

कुओं बालू के टीलों, समुद्र तट, बिजली के पंखों, चुल्हों और वाद्य-यन्त्रों से संगीत क्यों और कहाँ से फूट पड़ता है? यह अब तक भी वैज्ञानिकों के लिये एक पहेली बना हुआ है। अब तक इस सम्बन्ध में जितनी जाँच और पड़तालें हुईं, वह सब की सब अधूरी रह गई। किसी एक मत पर नहीं पहुँचा जा सका हि इस तरह की संगीत ध्वनियों का अमुक कारण है।

दृश्य जगत् बड़ा विलक्षण है पर उससे भी विलक्षण है, अदृश्य जगत् और उस पर नियन्त्रण करने वाली सत्तायें। वह आये दिन ऐसे चमत्कार दिखाकर चुप रह जाती है और मनुष्य सिर धुनता, बुद्धि खपाता रह जाता है। इन रहस्यों का कोई अर्थ नहीं निकाल पाता। संभवतः इसका कुछ हल अध्यात्म विज्ञान दे सके। सूक्ष्म शक्तियों और सूक्ष्म-जगत् के अध्ययन से सम्भव है, इस समस्याओं का कुछ समाधान हो सके पर उसके लिये मनुष्य को फिर से विज्ञानपरक ही नहीं श्रद्धा-भूत जीवन की और लौटना पड़ेगा। हमारे वेदों और उपनिषदों के आधार पर भी कुछ खोज करना होगा। योगिक साधनायें और तात्विक ज्ञान से आशा है, इन रहस्यों का बहुत कुछ यथार्थ जानकारी मनुष्य को मिल सकेगी।


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