विवेक की विजय

November 1968

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

प्राचीन पंचनद का एक लकड़हारा एक दिन जंगल गया। जैसे ही वह लकड़ी काटने को हुआ उसने देखा एक जौहड़ में सुअर का बच्चा फँस गया है। लकड़हारे ने असहाय सुअर को कीचड़ से बाहर निकाला और उसे अपने साथ घर ले आया।

उसने घर में भी कई सुअर पाल रखे थे उन्हीं में इसे भी छोड़ दिया। घर के सुअरों में भी एक छोटा बच्चा था, इन दोनों में गहरी दोस्ती हो गई।

एक दिन घर वाले सुअर के बच्चे ने पूछा- ‘‘भाई! तुम जिस प्रदेश में रहते थे, वहाँ तो किसी प्रकार के साधनों का अभाव नहीं है, फिर भी तुम इतने दुबले-पतले क्यों हो।”

जंगल का सुअर दुबला था पर था समझदार। उसने कहा- ‘‘भाई! किसी के पास बहुत साधन होना ही सुख का प्रतीक नहीं है, मूलवस्तु है निर्भयता- जो शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और दैविक सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है, वही सुखी होता है, भय चाहे किसी व्यक्ति का हो या मृत्यु का सदैव ही दुख देता है, उसके रहते न कोई ज्ञान काम देता है, न दर्शन। मेरी स्थिति भी यही थी। वन में स्वतन्त्रता अवश्य है, पर वहाँ भी शक्तिशाली द्वारा निर्बल को सताये जाने का भय सदैव बना रहता है। मैं जहाँ रहता हूँ, वहाँ एक सिंह रहता था, वह छोटे-छोटे जीवों को खा जाता था, उसी के भय ने मुझे पनपने नहीं दिया। स्वतन्त्र रहकर भी उद्वेग और चिन्ता खाये जाती थी।”

दूसरे सुअर के बच्चे ने कहा- मित्र! स्वच्छन्दतावाद की सर्वत्र ऐसी ही दुर्गति होती है। देखो हम यहाँ कम साधनों में भी अनुशासन और सामाजिक मर्यादाओं में रहकर भी हम कितने स्वस्थ और प्रसन्न हैं।”

लेकिन, उसने कुछ सोचकर- अपनी बात फिर जारी कर दी- ‘‘तुम तो बुद्धिमान हो सिंह का संगठित मुकाबला करते तो सम्भवतः वहाँ भी भय-मुक्त हो सकते थे।”

दूसरे दिन उस बच्चे के सेनाधिपत्य में सुअरों के एक दल ने शेर पर आक्रमण कर दिया। शेर बहुत से सुअरों को देखकर घबरा गया और वहाँ से अन्यत्र भाग गया। शेर की माँद के पास एक बूढ़ा सियार रहता था, उसने यह दृश्य देखा तो अपनी सियारनी से बोला किसी ने सच ही कहा है, बुद्धि और विवेक से काम लेने वाले छोटे लोग ही संसार में सदैव निर्भय और विजयी होते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118