‘श्रेष्ठ कर्मों का अनुष्ठाता इस लोक को त्याग कर चन्द्रलोक को प्राप्त होता है। कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा स्वर्ग में निवास करने वाले को तृप्त नहीं कर सकता, तब वह व्यक्ति सोचता है कि मुझे कर्म करने के लिये फिर धरती में जाना है। वह अपनी विचार-शक्ति से अपने कुटुम्बीजनों और उच्च आत्माओं को कुछ सन्देश देने का प्रयत्न करते हैं पर उनकी कोई नहीं सुनता और वह आत्मा दुःखी होती है कि जब मैं फिर संसार में जाऊँगा तो मनोविकार ग्रस्त लोगों की संगति में पड़कर मुझ शाश्वत शुद्ध आत्मा का स्वरूप भी मलिन और गन्दा हो जायेगा।” (कौशीतकि ब्राह्मणोपनिषद्)
अब कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कुछ रेडियो खगोलज्ञों ने घोषणा की है कि उन्हें बाह्य अंतरिक्ष से कुछ संकेतों का पता लगा है। डा.ए. एम. हेविश ने इन संकेतों को स्पष्ट करते हुए मुलाई वेधशाला में कुछ खगोलज्ञों के सामने बताया- ‘‘अब हमारा विश्वास है कि उक्त संकेत सम्भवतः न्यूड्रान नक्षत्रों से आ रहे हैं, जो सूर्य से अरबों, खरबों मील की दूरी पर स्थित माने जाते हैं।” डा. मुलाई ने इन संकेतों को विलक्षण रहस्यमय और आश्चर्यजनक बताते हुए कहा- ‘‘यह संकेत बहुत व्यवस्थित और नपे तुले समय भेजे गये लगते हैं।”
संकेत तब भी आते थे, अब भी आते हैं। प्रश्न यह है कि उन्हें सुने और समझें कौन?