युग-निर्माण योजना की विचार-पद्धति थोड़े ही समय से जनसाधारण के सामने आई है। छोटे ट्रैक्टों के रूप में उसे अधिक व्यवस्थित रूप से समझा- समझाया गया है। छोटे ट्रैक्टों का प्रकाशन डेढ़ वर्ष पूर्व ही आरम्भ या गया है, इस थोड़े समय में ही उनकी उपयोगिता जनसाधारण द्वारा इतनी अच्छी तरह समझी जा सकेगी, ऐसी आशा न थी, पर सफलता आश्चर्यजनक एवं आशातीत मिली।
छोटे ट्रैक्टों के रूप में इस विचार-धारा ने थोड़े ही समय में व्यापक रूप धारण किया। जनमानस में ऐसे साहित्य की भूख पहले से ही थी, उपयुक्त ढंग से जब उसे प्रस्तुत किया गया तो सर्वत्र उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा ही नहीं की गई, उसे स्वागत सत्कारपूर्वक अपनाया भी गया। झोला पुस्तकालयों के रूप में यह साहित्य अब जन-जन के पास घर-घर उत्साहपूर्वक पहुँचाया और भावनापूर्वक पढ़ा जा रहा है। यही कारण है कि अब तक निबन्ध, जीवन-परिचय, कथा, कविता विषयों पर कुल मिला कर 275 के करीब ट्रैक्ट प्रकाशित कर सकना सम्भव हो सका।
इस प्रेरणाप्रद युग-परिवर्तनकारी विचार-धारा का प्रचार अभी केवल हिन्दी भाषी क्षेत्र में हो सका है। यों भारत की आधी जनता हिन्दी समझती है पर शेष अहिन्दी भाषी जनता के लिये इस ज्ञान के द्वार अवरुद्ध ही हैं। विदेशों में तो इस ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता अनुभव की जा रही है। इसकी माँग भी है, पर लाभ बेचारे वही उठा पाते हैं, जो हिन्दी जानते हैं। अंग्रेजी आदि भाषा जानने वालों को तो इस प्रकाश से वंचित ही रहना पड़ता है।
इस अभाव को दूर करने के लिये अन्य भाषाओं में भी युग-निर्माण विचार-धारा को सस्ते ट्रैक्टों के रूप में छापने का निश्चय किया गया है। विश्व भाषाओं में से अंग्रेजी को और भारतीय भाषाओं में गुजराती, मराठी, बंगला को पहले हाथ में लिया जा रहा है। इस प्रकार चार भाषाओं में इस साहित्य के अनुवाद-प्रकाशन की भाषाओं को भी हाथ में लिया जायेगा।
यह सारा प्रकाशन सार्वजनिक सम्पत्ति डडडड गायत्री तपोभूमि द्वार किया जा रहा है। इसका ड़ड़ड़ड़ हानि का उत्तरदायित्व गायत्री तपोभूमि का होगा। ड़ड़ड़ड़ जुटाने का अति कठिन कार्य चिन्ता में डाले हुये है पर डडडड अन्ततः उसका भी कोई हल निकलेगा।
अभी अनुवाद कार्य आरम्भ करा रहे हैं। अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, बंगला भाषाओं के अच्छे जानकार सुशिक्षित परिजनों का सहयोग उसमें आवश्यक है। जिनकी इन भाषाओं में अच्छी प्रगति हो- प्रवाह युक्त अच्छा बढ़िया अनुवाद कर सकें, उनकी सेवायें आमन्त्रित की जा रही। इसके लिये कोई आर्थिक पारिश्रमिक न दिया जा सकेगा। सेवा-भाव से ही यह सहायता करनी पड़ेगी। अनुवादक के नाम पुस्तक पर मूल लेखक के नाम के साथ छपते रहेंगे।
जो सज्जन उपरोक्त सेवा के लिये अपनी शिक्षा तथा योग्यता को उपयुक्त समझते हों, वे अखण्ड-ज्योति का कोई एक लेख अनुवाद करके उस भाषा में भेजें ताकि उस सम्बन्ध में कुछ अधिक अनुमान लगाया जा सके।
विचार तो आगे इन भाषाओं में युग-निर्माण पत्रिका निकालने का भी है। यदि ऐसा बन पड़ा तो इन अनुवाद कर्ताओं की सेवायें निरन्तर काम आती रहेंगी।
अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों में से जो उपरोक्त भाषाओं के जानकार हों, और अपनी भाषा में अनुवाद पसन्द करते हों, वे अपने नाम नोट करादें। यदि उनकी संख्या संतोषजनक रही तो युग-निर्माण-योजना को उस भाषा में प्रकाशित करने की भी तैयारी की जायेगी।
अन्य भाषाओं के जानकार, अपने भाषा क्षेत्र में इस विचार-धारा को व्यापक बनाने के लिए प्रयत्न करेंगे तो मानव समाज की एक महती सेवा कर सकने का श्रेय प्राप्त करेंगे। ऐसा सहयोग सादर आमन्त्रित है।