एक बार भगवान कृष्ण से भेंट करने उद्धव गये। उद्धव और माधव दोनों छुटपन से दोस्त थे। द्वारपाल ने कहा- “इस समय भगवान पूजा में बैठे हैं, इसलिये अभी थोड़ी देर आपको ठहरना होगा।” समाचार पाते ही भगवान शीघ्र ही पूजा कार्य से निवृत्त होकर उद्धव से मिलने आये। कुशल प्रसन्न के बाद भगवान ने पूछा- “उद्धव, तुम किसलिए आये हो?”
उद्धव ने कहा- “यह तो बतलाऊंगा, पहले मुझे यह बताइये कि आप पूजा किसकी कर रहे थे?” भगवान ने कहा- “उद्धव तुम यह नहीं समझ सकते।” लेकिन उद्धव कब मानने वाले थे। उन्होंने जिद्द की। तब भगवान ने कहा- ‘‘उद्धव, तुझे क्या बताऊं? मैं तेरी ही पूजा कर रहा था।’’
“उद्धव माधव की पूजा करता है और माधव उद्धव की पूजा करता है। भगवान भक्त की पूजा करते हैं और आप भगवान की। इस आदर्श, से भगवान बताना चाहते हैं कि- ‘‘जो मालिक हैं, वे मजदूरों के सेवक बनें, जो शासक हैं, वे प्रजा के सेवक बनें, शिक्षक विद्यार्थियों के सेवक बनें, माता-पिता अपनी सन्तान के सेवक बनें, उद्योगपति श्रमिकों के सेवक बनें, जिस किसी की जिम्मेदारी का काम मिला है, वे सब सेवक बनकर काम करेंगे तो दुनिया के सारे झगड़े मिट जायेंगे।” -विनोबा।