असन्तोष ही सबसे बढ़कर दुःख है और संतोष ही सबसे बड़ा सुख है, अतः सुख चाहने वाले पुरुष को सदा संतुष्ट रहना चाहिए।
सन्तोष-सेतु जब टूट जाता है तब इच्छा का बहाव अपरिमित हो जाता है। -प्रेमचंद्र (प्रेमपचीसी)