अपरोपकारी का सार निष्फल ही चला जाता है

November 1966

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अपरोपकारी का सार निष्फल ही चला जाता है-

प्यासा मनुष्य अथाह समुद्र की ओर यह सोच कर दौड़ा कि महासागर से जी भर अपनी प्यास बुझाऊंगा! वह किनारे पहुँचा और अंजलि भर कर जल मुँह में डाला किन्तु तत्काल ही बाहर निकाल दिया।

प्यासा असमंजस में पड़ कर सोचने लगा कि सरिता सागर से छोटी है किन्तु उसका पानी मीठा है। सागर सरिता से बहुत बड़ा है पर उसका पानी खारा है।

कुछ देर बाद उसे समुद्र पार से आती एक आवाज सुनाई दी कि— सरिता जो पाती है उसका अधिकाँश बाँटती रहती है किन्तु सागर सब कुछ अपने में ही भरे रखता है। दूसरों के काम न आने वाले स्वार्थी का सार योंही निःसार होकर निष्फल चला जाता है। आदमी समुद्र के तट से प्यासा लौटने के साथ एक बहुमूल्य ज्ञान भी लेता गया जिसने उसकी आत्मा तक को तृप्त कर दिया।



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