पापी हो या पुण्यात्मा अथवा वध के योग्य अपराध करने वाले ही क्यों न हों उन सबके ऊपर श्रेष्ठ पुरुषों को दया करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा कोई नहीं है जो सर्वथा अपराध न करता हो। हम सभी ईश्वर से दया की प्रार्थना करते हैं और वही प्रार्थना हमें दूसरों पर दया करना सिखाती है। दया सब वस्तुओं में सबसे अधिक सस्ती है, उसके प्रयोग में हमें सबसे कम कष्ट सहन करना और आत्म-त्याग करना होता है
—बाल्मीकि