परिश्रम करना गौरव की बात

November 1966

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परिश्रम करना गौरव की बात!

अमेरिका के स्वाधीनता-संग्राम के समय एक नगर में किलेबन्दी हो रही थी। अनेक सैनिक एक दीवार पर लकड़ी का लट्ठा चढ़ाने का प्रयत्न कर रहे थे किन्तु वह चढ़ नहीं रहा था। उनका नायक दूर से ही उत्साहित कर रहा था और कभी डाट देता था। इतने में एक घुड़सवार उधर से निकाला। वह रुका और नायक से कहा—’जरा आप भी हाथ लगाइये न, लकड़ी आसानी से चढ़ जायेगी।’ नायक ने सवार की ओर आँख तरेर कर कहा—’जानते नहीं, मैं इस टुकड़ी का नायक हूँ भला ऐसा छोटा काम कैसे कर सकता हूँ।’ सवार ने उतरकर सैनिकों की मदद की और लट्ठा बात-की-बात में चढ़ा दिया। घोड़े पर सवार होते समय नायक ने उसे धन्यवाद दिया। सवार ने कहा—’धन्यवाद की जरूरत नहीं महाशय, जब भी ऐसे काम में सहायता की जरूरत हो अपने प्रधान सेनापति को संदेश भेज देना। वह परिश्रम का गौरव जानता है!’


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