परोपकारी को कहीं भी भय नहीं

November 1966

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परोपकारी को कहीं भी भय नहीं-

एक गीदड़ एक दिन गढ़े में गिर गया। बहुत उछल-कूद की किन्तु बाहर न निकल सका। अन्त में हताश होकर सोचने लगा कि अब इसी गढ़े में मेरा अन्त हो जाना है। तभी एक बकरी को मिमियाते सुना। तत्काल ही गीदड़ की कुटिलता जाग उठी। वह बकरी से बोला—’बहिन बकरी! यहाँ अन्दर खूब हरी-हरी घास और मीठा-मीठा पानी है। आओ, जी भरकर खाओ और पानी पियो।’ बकरी उसकी लुभावनी बातों में आकर गढ़े में कूद गई।

चालाक गीदड़ बकरी की पीठ पर चढ़कर गढ़े से बाहर कूद गया और हँसकर बोला—’तुम बड़ी बेवकूफ हो, मेरी जगह खुद मरने गढ़े में आ गई हो।’ बकरी बड़े सरल भाव से बोली—”गीदड़ भाई, मैं परोपकार में प्राण दे देना पुण्य समझती हूँ। मेरी उपयोगिता वश कोई-न-कोई मुझे निकाल ही लेगा किन्तु तुम निरुपयोगी को कोई न निकालता। परोपकारी को कहीं भी भय नहीं होता है।”


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