आप शक्ति -पुरुश्चरण में सम्मिलित रहें ही

February 1966

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अखण्ड-ज्योति परिवार के परिजनों द्वारा विगत शरद्-पूर्णिमा से राष्ट्र की शक्ति बढ़ाने एवं शत्रुओं का दर्प-मर्दन करने के लिये जो सामूहिक शक्ति -पुरुश्चरण आरम्भ किया गया है, वह आशातीत सफलता के साथ चल रहा है। शक्ति-बीज के साथ गायत्री महामंत्र का हर महीने 24 करोड़ विधिवत् शक्ति-पुरुश्चरण धार्मिक जगत के इतिहास में एक अनुपम आयोजन है। पिछले हजारों वर्षों से इतना बड़ा पुरुश्चरण दूसरा नहीं हुआ।

इन दिनों इस पुरुश्चरण में लगभग 10 हजार व्यक्ति अत्यन्त श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ भाग ले रहे हैं। जिन्होंने पुरुश्चरण के समस्त नियमोपनियमों का पालन किया, उनकी इतनी संख्या हो जायगी, इसकी आशा न थी, पर राष्ट्रीय महत्व के प्रश्न पर परिजनों की जागरुकता बहुत ही सराहनीय एवं उत्साहवर्धक निकली। जब राष्ट्र का प्रत्येक भावनाशील नागरिक तन, मन,धन से अपनी-अपनी स्थिति और शक्ति के अनुसार सुरक्षा प्रयत्नों को सफल बनाने में लगा हुआ है तो हम लोग भी चुप नहीं बैठ सकते थे।

सैनिकों की भर्ती, रक्त की माँग, धन की आवश्यकता इन तीनों ही क्षेत्रों में परिवार के सदस्यों ने निर्धारित लक्ष्य से कहीं अधिक कार्य किया है। अभी संकट का समय है, अभी अधिकाधिक परीक्षा की घड़ी आ सकती है और अधिक बलिदान की आवश्यकता पड़ सकती है, इसलिए अभी तो नहीं, पर शान्ति का समय आने पर हम अखंड-ज्योति के एक विशेषाँक के रूप में यह प्रकट करेंगे कि अपने परिवार ने उत्कृष्ट श्रेणी के देशभक्तों की तरह कितना बढ़-चढ़कर त्याग-बलिदान इस राष्ट्रीय संकट के समय में किया है? इसी संदर्भ में एक बहुत बड़ी देन शक्ति-पुरुश्चरण की भी है। अस्त्र-शस्त्र, टैंक, वायुयान आदि विजय के आवश्यक उपकरण जो कार्य कर सकते हैं, उससे कम प्रभावशाली अध्यात्मिक उपचार भी नहीं होते। अपने पथ-प्रदर्शक महाप्रकाश एवं शास्त्र-विवरण के अनुसार हमें सुनिश्चित विश्वास है कि आयोजित पुरश्चरण का प्रभाव ब्रह्मास्त्र जैसा अद्भुत ही होगा।

अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति की वर्तमान दुरभिसन्धियों का जिन्हें ज्ञान है, वे स्थिति की गम्भीरता को समझते हैं। अभिमन्यु की तरह भारत को एक विषम चक्र-व्यूह में फँसाने के लिए दोनों शक्ति गुटों के राजनेता भयानक कुचक्र रचते रहे हैं। इन विभीषिकाओं को पार करते हुए भारत धीरे-धीरे आशाजनक सफलता की ओर ही चल रहा है दुरभिसन्धियाँ टूट रही हैं, संकट के घटाटोप छितराने लगे हैं, एक बार आक्रमणकारियों के दाँत और पंजे टूट चुके हैं। दूसरी बार फिर वे हमला करेंगे तो उनको समुचित शिक्षा देने के लिए फिर करारा प्रत्युत्तर मिलेगा। इस प्रत्युत्तर की तैयारी में जहाँ सैन्य-सज्जा के साधनों की सुव्यवस्था आवश्यक है, वहाँ आध्यात्मिक उपचारों का मूल्य एवं महत्व भी कम नहीं है। अपने परिवार द्वारा आयोजित वर्तमान शक्ति-पुरुश्चरण इस प्रकार के उपचारों में सर्वथा अग्रणी है।

जो व्यक्ति या परिवार शक्ति-बीज समेत आठ माला प्रतिदिन करके मास में 24 हजार पुरुश्चरण कर रहे हैं उनका तप-त्याग अभिनन्दनीय है। पर जो उतना नहीं कर सकते, उन्हें भी इससे सर्वथा विलग नहीं रहना चाहिए। उन्हें कम से कम एक माला सबीज गायत्री का जप राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए करते ही रहना चाहिए। अपने परिवार का एक भी सदस्य ऐसा नहीं रहना चाहिए जिसके बारे में यह कहा जाय कि उसने इस सरल से आध्यात्मिक उपचार आयोजन में भी भाग लेकर अपने सामयिक राष्ट्रीय कर्त्तव्य का पालन नहीं किया था।

गत छः मास पूर्व जो घटनाएं गर्जन-तर्जन के साथ आई थीं, वे छितराने तो लगी हैं, पर सर्वथा तिरोहित नहीं हुई हैं। खतरा अभी भी पूर्ववत् ही विद्यमान है। इसलिए हमें अपने प्रयासों में तनिक भी ढील नहीं आने देनी चाहिए। एक वर्ष के लिए अपना जो महापुरुश्चरण चल रहा है, उसे परिपूर्ण श्रद्धा और तत्परता के साथ चलने देना चाहिए। जिन्होंने अभी तक उसमें भाग न लिया हो वे अबिलम्ब कम से कम एक माला मन्त्र नित्य जपने का नियम लेकर उसमें भागीदार अवश्य बन जायें।

इस महान आध्यात्मिक उपचार से राष्ट्र की शक्ति निश्चित रूप से बढ़ेगी, शत्रुओं का दर्प निश्चित रूप से चूर्ण होगा और भविष्य की उज्ज्वल आशाओं की संभावनाएं निश्चित रूप से बढ़ेंगी। ऐसे समर्थ प्रयास में भागीदार होना अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रत्येक सदस्य का राष्ट्रीय एवं धार्मिक कर्तव्य है। हमें आशा है कि परिवार का एक भी सदस्य इस महान् अभियान में सम्मिलित रहने से वंचित न रहेगा।

राष्ट्रीय दृष्टि से जो साधना शक्ति अभिवर्धन करेगी वह शक्ति के लिए, साधना करने वाले के लिए व्यक्तिगत रूप से भी उतनी ही उपयोगी सिद्ध होगी। व्यक्तिगत अशांति एवं शत्रु समाधान में भी इस पुरुश्चरण के भागीदारों को विशेष लाभ मिलेगा। परमार्थ के साथ इस साधना में स्वार्थ सिद्धि का भी अवसर मिलेगा।

इन दिनों शान्ति सुलह की बातें चल रही हैं। परमात्मा से प्रार्थना करनी चाहिए वे सफल हों। पर आक्रान्ताओं के मनसूबे और उनकी चालों को देखते हुए यह सोचना ठीक नहीं कि वे रातोंरात दूध के धुले बन जायेंगे और अपना काला हृदय सफेद कर लेंगे। अभी चिन्ता और कठिनाइयों का समय समाप्त हुआ नहीं मान लेना चाहिये। फिर शत्रुओं का आक्रमण ही तो एक मात्र कठिनाई नहीं है। आन्तरिक दुर्बलताएं, कठिनाइयाँ और अस्त-व्यस्तताऐं भी तो कम उलझन भरी नहीं हैं। उन्हें भी किसी घातक शत्रु से कम नहीं मानना चाहिए। इन परिस्थितियों को देखते हुए वर्तमान शक्ति-पुरुश्चरण का महत्व और भी अधिक है। राष्ट्र को हर दृष्टि से इतना समर्थ बनाना होगा, जिसकी शक्ति का मूल्यांकन करते हुए कोई अनिष्ट न भीतर से उठे, न बाहर से और यदि उठे भी तो उसका समर्थ हल तुरन्त निकल आवे।

इसलिए किन्हीं शान्ति-वार्ताओं को देखते हुए भी अपने इस महान् आध्यात्मिक उपचार में किसी भी तरह की शिथिलता न आने देनी चाहिये, वरन् और भी अधिक उत्साह के साथ उसे जारी रखना चाहिए।


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