सादगी बरतें और स्वच्छ रहें।

February 1966

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मनुष्य के दुर्गुणों में गन्दगी सबसे बुरा दुर्गुण है। यह दुर्गुण मनुष्य को इसी लोक में जीते जी नरक में निवास कराता है। नरक की कल्पना में गन्दगी का मुख्य स्थान है। गन्दगी का दूसरा नाम नरक ही है। जहाँ बदबू आती हो, कुरुचिता एवं जुगुप्सा से भरी स्थिति हो, मन मलीन रहे, आत्मा में प्रसन्नता की प्रतिक्रिया न हो, वह स्थान नरक ही तो कहा जायेगा।

जिसके कपड़े गन्दे हैं, हाथ, पाँव, मुँह, नाक गंदगी से भरे हैं, शरीर से बदबू आ रही है, उस मनुष्य को नारकीय ही कहना पड़ेगा। मनुष्य तो वास्तव में वह है, जो साफ सुथरा रहे। जिसके कपड़े और जिसका शरीर गन्दगी से रहित हो। जिसके संपर्क में किसी को घृणा न हो। जिसे देखकर किसी को कुरुचि उत्पन्न न हो। इसके विपरीत जिसका दर्शन जुगुप्सा और संपर्क अरुचि उत्पन्न करता है, वह मनुष्य होते हुए भी मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है।

बहुत से लोग साफ-सुथरा रहने का अर्थ सजे-बजे रहना समझते हैं। वे समझते हैं कि लक-दक कपड़े, बालों में तेल-फुलेल, मुँह पर क्रीम-स्नो तथा शरीर में इत्र आदि महकता रहना ही सफाई एवं स्वच्छता की निशानी है।

इस प्रकार यह एक भ्रम ही नहीं, बल्कि एक गन्दी आदत भी है। अधिक सजे-धजे अथवा लक-दक रहना स्वच्छता का नहीं, बल्कि प्रदर्शन का चिन्ह है, जो स्वयं ही एक मानसिक गन्दगी है। जिसमें हीन मनोवृत्ति का विकार होता है अथवा जिसमें कुप्रवृत्तियाँ रहा करती हैं, वह अपनी कमजोरी छिपाने के लिये प्रदर्शन का सहारा लिया करते हैं।

जिनका मन ऊँचा है। जिनके विचार निर्मल हैं और जो स्वच्छता के साथ सादगी का शाश्वत सम्बन्ध मानते हैं, वे प्रदर्शन रहित सफाई के ही समर्थक होते हैं। कपड़े साफ-सुथरे और कायदे करीने के हों, शरीर अच्छी प्रकार से साफ और स्वच्छ हो। बाल ठीक तरह से कटे हों, चेहरा सौम्य एवं स्वच्छ हो, दाँतों में गन्दगी न लगी हो, नाखून ठीक तरह से कटे हों आदि सलीके ही वास्तविक स्वच्छता है। किसी प्रकार का अनावश्यक बनाव शृंगार स्वच्छता नहीं, बल्कि एक गन्दगी है।

गन्दगी की मोटी-सी पहचान है कि जिसे देखकर किसी के मन पर अप्रिय प्रतिक्रिया हो। अधिक बनाव शृंगार अथवा साज-पाट को देखकर किसी भी भद्र व्यक्ति के मन पर प्रियता पूर्ण प्रतिक्रिया न होगी, बल्कि उल्टे टीमटाम वाले व्यक्ति की मानसिक हीनता पर तरस ही आयेगा। अधिक टीपटाप से जो प्रभावित, आकर्षित अथवा प्रसन्न होते हैं, वे दर्शक भी वास्तव में प्रदर्शनकारी की तरह ही हीन भावना के होते हैं। स्वच्छता वास्तव में वही है जो स्वभावगत हो, जिसको प्रदर्शन के उद्देश्य से समझ-बूझ कर पैदा न किया गया हो।

स्वच्छता मनुष्यता का और मलीनता पशुता का चिन्ह है। आप मनुष्य हैं, इसलिये गन्दा रहना छोड़िये। गन्दगी जहाँ आपको असुन्दर, अनाकर्षक और घृणास्पद बनाती है, असम्मानित करती है, वहाँ स्वच्छता आपको आकर्षक, प्रियता पूर्ण तथा समाहित बनायेगी।

आप मले-कुचैले कपड़े पहने जहाँ जायेंगे, लोग आप से बात करने, पास बिठलाने और किसी प्रकार का संपर्क रखने में संकोच करेंगे। आपको घृणित और कुरुचिपूर्ण व्यक्ति समझेंगे। किसी की इच्छा आपसे अपना काम कराने, आपका काम करने, सहायता सहयोग लेने अथवा देने की नहीं होगी। इस प्रकार एक गन्दा मात्र रहने से ही आप गुणवान होते हुए भी समाज में सहायता सहयोग के अनधिकारी हो जायेंगे। सामाजिक असहयोग जीवन की स्वाभाविक गति में एक बड़ा अवरोध सिद्ध होगा।

गन्दा रहने से समाज में अन्य लोग ही नापसन्द नहीं करते, बल्कि मनुष्य अपने को स्वयं भी अच्छा नहीं लगता, उसे खुद से ही घृणा होने लगती है। याद करिये उस किसी अवसर को जब आप किसी कारणवश दो-तीन दिन तक न नहा पाये थे और न कपड़े बदल पाये थे। क्या उस गंदी स्थिति में आपको अपने से घृणा नहीं हुई थी अथवा आपका मन ग्लानि से नहीं भरा रहा था?

स्वाभाविक आनन्द देने वाले सौंदर्य पूर्ण प्राकृतिक दृश्य भी यदि गन्दगी की हालत में देखे जायें तो वे भी अपेक्षित आनन्द नहीं देते हैं। कारण यही हैं कि गन्दगी के बोझ से दबे हुए मन-मस्तिष्क एक रोगी की तरह अनुभूति हीन रहते हैं। मलीनता से प्रभावित मन मस्तिष्क पर प्रसन्नतापूर्ण प्रतिक्रिया हो ही नहीं पाती। इसीलिये गन्दा तथा मैला-कुचैला व्यक्ति जीवन के किसी भी क्षेत्र का वाँछित आनन्द नहीं ले पाता।

जब आप नहाये-धोये और साफ कपड़े पहने स्वच्छता की दशा में होते हैं, तब अपने अन्दर एक स्वर्गीयता का अनुभव करते हैं। ऐसा अनुभव होता है कि जैसे हम साधारण स्थिति से उठे हुए कुछ ऊँचे आदमी हैं। अच्छे विचार और अच्छी भावनायें मस्तिष्क में आती हैं। अच्छे काम और शुभ कामनाओं का उद्रेक होता है। स्वच्छता की स्थिति में हर काम अच्छी प्रकार करीने से करने की उमंग ही नहीं आती, बल्कि उसकी एक नव-चेतना और नवीन बुद्धि भी आ गई सी होती है। अपने में अधिक योग्यता और अधिक शक्ति की अनुभूति होती रहती है।

जिस दिन आप अपना कमरा साफ करके उसकी हर चीज कायदे और तरीके से सुव्यवस्थित करके उसमें बैठते हैं, तब ऐसा लगता है मानो आपका वह कमरा नया-नया बना हो और आप उसमें पहली बार बैठे हों। स्वच्छता में एक चिर नवीनता रहा करती है और नवीनता में एक स्फूर्ति, एक उत्साह जिससे सुरुचि के कारण मनुष्य अपना काम अधिक मात्रा में, अच्छी तरह कर लिया करता है।

जिस प्रकार गन्दगी स्वयं आधा रोग है, उसी प्रकार स्वच्छता आधे से अधिक आरोग्य है। जिन रोगियों के आस-पास स्वच्छता रक्खी जाती है, जिनके कपड़े और बिस्तर जल्दी-जल्दी बदल दिये जाते हैं, वे उतनी जल्दी ही ठीक हो जाते हैं। आस-पास सब तरफ स्वच्छता रहने से उनका मन प्रसन्न रहता है, जोकि उनके स्वास्थ्य लाभ में बहुत सहायक हुआ करता है। यही कारण है कि अच्छे अस्पतालों का वातावरण बहुत ही स्वच्छ एवं सुरुचिपूर्ण रक्खा जाता है। रोगी की परिचर्या करने वाली नर्सें ही नहीं, मेहतर और मेहतरानियों तक को स्वच्छ रहने का निर्देश रहा करता है।

घर की पुरानी और गन्दी चीजें जिनसे मनुष्य का मन ऊब चुका होता है, जब साफ करके करीने से रख दी जाती हैं, तब बड़ी ही प्यारी लगने लगती हैं। गन्दी हालत में अस्त-व्यस्त पड़ी हुई जो वस्तुऐ स्थान को गन्दा और अरुचिपूर्ण बना देती हैं, वे ही जब साफ-सुथरी करके करीने से रख दी जाती हैं घर का शृंगार बनकर न केवल स्वयं ही सुहावनी लगने लगती हैं, बल्कि घर को भी शोभायमान बना देती हैं।

गन्दे और अस्त-व्यस्त कपड़ों में लिपटी हुई स्त्रियाँ व बच्चे स्वाभाविक सुन्दर होने पर भी अच्छे नहीं लगते। उनसे बात करने की भी इच्छा नहीं होती। इसके विपरीत एक बार असुन्दर स्त्री-पुरुष भी यदि साफ-सुथरे और करीने से पहने-ओढ़े होते हैं तो भी आकर्षक लगने लगते हैं।

स्वच्छता जहाँ स्वास्थ्यवर्धक होती है, वहाँ सौंदर्यवर्धक भी। कोई कितना ही दुबला-पतला और कुरूप क्यों न हो, यदि उसकी वेश-भूषा स्वच्छ एवं समीचीन है तो किसी को भी उससे विकर्षण न होगा। जो विकर्षण उसकी कुरूपता अथवा भोंड़ापन पैदा करेगा, उसे उसकी स्वच्छ एवं समीचीन वेश-भूषा दूर कर देगी।

स्वच्छता एवं समीचीनता मनुष्य की सज्जनता तथा भद्रता की परिचायिका भी है। जो गन्दा है, वेश-भूषा में अस्त-व्यस्त है, शरीर से मैला-कुचैला रहता है उसमें उत्तरदायित्व, जागरुकता एवं व्यवस्था बुद्धि की कमी की सम्भावना मानी जा सकती है। मनुष्य के रहन-सहन से उसके स्वभाव का पता लगा लेना कोई कठिन काम नहीं है।

स्वच्छ रहने से मनुष्य के शारीरिक ही नहीं, मानसिक मल भी दूर होते हैं, उसकी बुद्धि निर्मल होती है और आत्मा में तेज आता है। इसलिए आवश्यक है कि मनुष्यता की सिद्धि करने और जीवन में ऋद्धियों को पाने के लिए हम सबको हर तरह से स्थाई रूप से अधिक से अधिक स्वच्छ रहना चाहिए।


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