पाप-वासना से बचो!
अपनी सब प्रकार की दुर्बलताओं का परित्याग कर आत्म-रक्षा के लिये खड़े हो। तुम्हारी कोई भी दुर्बलता पराजय का कारण बन सकती है। पाप से बचो वह कभी भी नष्ट करने के लिये उद्यत हो सकता है। वासना की भूमि पर कभी भी स्वतंत्रता का बीज अंकुरित नहीं होता। स्वतन्त्रता ज्ञान के बीच उदित होती है। आत्म-निर्माण के द्वारा उसकी रक्षा होती है। इसलिए तुम अपने गुणों के विकास पर ध्यान दो। साहसी बनो। पराक्रम और पुरुषार्थ धारण करो। प्रेम, विश्वास और एकता पैदा करो। तुम्हें विजय की तलाश न करनी पड़ेगी। तुम्हारे चरित्र की दृढ़ता सौ दुश्मनों को हरा सकती है। तुम्हारी स्वाधीनता को स्थिर रख सकती है।
—टी. एल. वास्वनी