अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों के सम्मुख इस वर्ष जो कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये हैं, प्रसन्नता की बात है कि परिजनों ने उनके प्रति आशाजनक उत्साह दिखाया है। कदम इसी प्रकार बढ़ते रहे तो यह कहा जा सकता है कि अपना परिवार नव निर्माण की दशा में ऐतिहासिक भूमिका प्रस्तुत करेगा
पाँच रचनात्मक कार्यक्रम
(1) शक्ति पुरश्चरण कार्यक्रम बहुत ही व्यवस्थित और सुचारु रूप से चल रहा है। 24 करोड़ गायत्री महामंत्र का शान्ति बीज के साथ जप नियमित रूप से चल रहा है। इसका चमत्कार सीमा संघर्ष में भारत का पक्ष भारी रहने के रूप से सामने आया है। अभी और भी अनेक कठिनाइयाँ शेष हैं। उनके समाधान के लिए यह पूरे एक वर्ष चलना है। शरद पूर्णिमा को इसे आरम्भ किया था, उसी दिन उसकी पूर्णाहुति भी होगी। जहाँ यह साधना-क्रम चल रहा है वहाँ उत्साहपूर्वक जारी रखा जाय और जिन्होंने अभी भाग नहीं लिया हो वे अब लेना आरम्भ कर दें।
(2) प्राप्तः सोकर उठते समय शारीरिक और मानसिक दिनचर्या बनाने और रात को सोते समय उसका लेखा-जोखा लेने की साधना हम में से हर एक को आरम्भ कर देनी चाहिए। जीवन-शोधन की आधार शिला इस दैनिक आत्म-चिन्तन पर ही अवलम्बित है।
(3) एक घंटा समय और एक आना नित्य नव-निर्माण के लिये नियमित रूप से निकालने में तनिक भी शिथिलता न बरती जाय। अपने समीपवर्त्ती, परिचित, प्रियजनों को नव निर्माण का साहित्य पढ़ाने, सुनाने का क्रम एक धर्म कर्तव्य माना जाय और उसमें वह एक घंटा लगाया जाय। नये ट्रैक्टों का घरेलू पुस्तकालय हम में से हर एक के यहाँ होना चाहिये। हमें एक से दस बनाने का लक्ष्य पूरा करना ही चाहिए।
(4) जन्म दिन मनाने की कार्य-पद्धति हर जगह प्रचलित की जाय। जहाँ भी अखण्ड-ज्योति परिवार के थोड़े भी सदस्य हों वहाँ यह प्रथा अवश्य चलने लगे। इससे परस्पर संगठन सूत्र में बँधने तथा मिल-जुलकर बहुत कुछ कर सकने का पथ प्रशस्त होगा। जहाँ अन्य संस्कारों का प्रचलन भी संभव हो वहाँ उसकी व्यवस्था की जाय।
(5) अखण्ड ज्योति में केवल विचार प्रेरणायें रहती हैं। इन प्रेरणाओं को कार्य रूप में कैसे परिणित किया जा सकता है या किया जा रहा है इसका व्यवहारिक मार्गदर्शन ‘युग निर्माण योजना’ पाक्षिक पत्रिका में रहता है। इस प्रकार एक दूसरे की पूरक हैं। एक के बिना दूसरी अपूर्ण रहती है। इसलिए अखण्ड ज्योति के प्रत्येक पाठक को युग निर्माण योजना को भी नियमित रूप से पढ़ते रहना चाहिए।
इन पाँच रचनात्मक कार्यों की पूर्ति आगामी गुरु-पूर्णिमा तक हर जगह हो जानी चाहिये। योजना का आरंभ गुरु पूर्णिमा को हुआ था। हर वर्ष उसकी एक वर्षीय योजना बन जाती है।
पाँच प्रशिक्षणात्मक कार्यक्रम
प्रशिक्षण के लिए जो पाँच कार्यक्रम इस वर्ष बनाये गये हैं, उनसे अधिकाधिक लाभ उठाने की चेष्टा हमें करनी चाहिए।
(1) जेष्ठ में प्रायः अधिकाँश लोगों को अवकाश रहता है। उस समय 20 दिन का गायत्री तपोभूमि में शिक्षण शिविर रखा गया है। ता॰ 25 मई से 13 जून तक वह चलेगा। साल के 345 दिनों में परिजन अपने काम में लगे रहें और 20 दिन हमारे पास रहें तो इससे हम लोगों के बीच कौटुम्बिकता, आत्मीयता भी बनी रहेगी—बढ़ती रहेगी और साथ ही जीवन जीने की कला का व्यवहारिक आध्यात्मिक अभ्यास भी बढ़ेगा। यह प्रशिक्षण हर परिजन के लिए सच्चे सत्संग एवं प्रेरणा प्रयोग का अनुपम लाभ देगा। इसमें सम्मिलित होने का प्रयत्न किया जाय।
(2) संस्कार और पर्वों के मानने का प्रचलन हमारे साँस्कृतिक पुनरुत्थान आयोजन का प्राण है। इसी माध्यम से हम जन-जागरण एवं निर्माण का प्रयोजन पूर्ण कर सकेंगे। यह प्रचलन सर्वत्र होना चाहिये। इसके लिये ऐसे प्रशिक्षित कार्यकर्ता होने चाहिए जो इन विधानों को ठीक तरह से करा सकें और साथ-साथ उनमें छिपे रहस्यों एवं उद्देश्यों को सिखा समझा सकें। इन कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या सब जगह हो जाय इसलिए चार दिवसीय शिविरों की शृंखला शाखाओं में चलनी चाहिए। जहाँ से माँग आवेगी वहाँ के लिए मथुरा से प्रशिक्षक भेजा जायगा। और सुविधा एवं क्रम के अनुसार शिविर की तारीखें निश्चित कर दी जावेंगी। इन शिविरों की हर जगह व्यवस्था सोची जाय।
(3) एक वर्षीय प्रशिक्षण योजना मार्च की अखण्ड-ज्योति में छपी है। जिन्हें इतना अवकाश हो उसमें सम्मिलित होने का प्रयत्न करें। इस शिक्षा में अपने व्यक्तित्व को प्रतिभाशाली बनाने, जीवन में महत्वपूर्ण कार्य कर सकने, आजीविका की समस्या सुलझाने तथा आत्मबल संग्रह करने के सभी लाभ विद्यमान हैं। हमारे द्वारा एक वर्ष तक प्रशिक्षित व्यक्ति अपने जीवन में असाधारण प्रगति कर सकने वाले बनेंगे। यह प्रशिक्षण किसी को अखरेगा नहीं, वरन् हर शिक्षार्थी को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ सदुपयोग होने के रूप में ही यह एक वर्ष सदा स्मरण रहेगा।
(4) जो लोग पारिवारिक जिम्मेदारियों से निवृत्त हो चुके हैं और गुजारे के साधन जिनके पास हैं उन सभी निवृत्त लोगों को वैसे तो सदा के लिए ही साधना, स्वाध्याय, सेवा और संयम की साधना करने के लिए मथुरा रहना ही चाहिए, पर यदि इतना न बन पड़े तो एक वर्ष तो रहना ही चाहिए। इस एक वर्ष में वे अपने गायत्री पुरश्चरण अधिक उत्तम रीति से कर सकते हैं। साथ ही गीता, रामायण, वेद, शास्त्र, उपनिषद्, दर्शन आदि का सार-तत्व भी एक नियमित पाठ्यक्रम के रूप में बढ़ाया जायगा। गृहस्थ में प्रवेश करने से पूर्व जिस प्रकार बालकों को हिसाब, भूगोल, भाषा आदि की पढ़ाई पढ़नी पड़ती है उसी प्रकार पारलौकिक जीवन में प्रवेश करने से पूर्व—ब्रह्मविद्या की शिक्षा भी प्राप्त करनी चाहिए। यह प्रशिक्षण एक वर्ष का तो होना चाहिए। जिनकी गृह पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने वाले घर पर मौजूद हैं, वे एक वर्ष के लिए ब्रह्मविद्या की शिक्षा एवं गायत्री तपश्चर्या द्वारा अध्यात्मिक प्रकाश उपलब्ध करने के लिए मथुरा आवें।
दोनों ही प्रकार के एक वर्षीय पाठ्यक्रमों में जो लोग सम्मिलित होना चाहें। उन्हें भी 24 मई को मथुरा आना चाहिए। शिविर में सम्मिलित रहने के उपरान्त यह दोनों ही प्रशिक्षण प्राप्त करना वे आरम्भ कर देंगे।
(5) जिन्हें अपने बच्चों से नौकरी नहीं करानी है, जिनके पास अपने बच्चों के लिए कृषि, व्यवसाय आदि की व्यवस्था है वे अपने बच्चों को चार वर्ष की शिक्षा के लिए मथुरा भेजें। जिस प्रकार डॉक्टरी, इंजीनियरी के चार वर्षीय पाठ्यक्रम हैं, वैसे ही इस जीवन-समस्याओं को सुलझा सकने वाले, प्रगति के पथ पर हर क्षेत्र के विकसित करने वाले पाठ्यक्रम में भी चार वर्ष लगेंगे। हमारे यहाँ पढ़ाई जाने वाली यह शिक्षा—हायर सेकेन्डरी स्तर तक की होगी, साथ ही बहुत कुछ और भी पढ़ा दिया जायगा जो अन्यत्र दिखाई नहीं पड़ता। प्राचीनकाल के गुरुकुलों का एक वास्तविक स्वरूप प्रस्तुत करने का हमारा मन है। इसमें 14 वर्ष से अधिक आयु के बच्चे ही लिये जावेंगे।
जो अभिभावक अपने बच्चों को इस शिक्षा के लिए भेजना चाहें, नाम नोट करा दें। इस वर्ष सम्भव हो सका तो इस वर्ष नहीं तो आगे भी सुविधानुसार यह शिक्षा आरम्भ की जा सकती है। नाम नोट रहेंगे तो उन्हें समय पर बुलाया जा सकेगा।
उपरोक्त सभी प्रकार की शिक्षाओं के शिक्षार्थी अपने भोजन, वस्त्र आदि का व्यय भार स्वयं उठावेंगे। मिल-जुल कर कई शिक्षार्थी अपना भोजन आसानी से बना सकते हैं इससे यह कला भी सीखने को मिलती है और आर्थिक बचत भी काफी रहती है। जो बना न सकेंगे उनके लिए उचित मूल्य पर बने भोजन का भी प्रबन्ध हो सकता है। निवास, रोशनी, पानी, सफाई एवं शिक्षा की व्यवस्था निःशुल्क रहेगी।
उपरोक्त पाँचों प्रकार की शिक्षाओं की व्यवस्था उन्हीं के लिए हो सकेगी जो पूर्व सूचना भेजकर स्वीकृति प्राप्त कर लेंगे। बिना स्वीकृति के किसी को भी न आना चाहिए।