भगवान की भक्ति और उसके स्वरूप

April 1966

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वृद्धावस्था तथा लकवे की बीमारी के कारण श्री राज नारायण वसु राज गृही में ही रहने लगे। अब उनका बाहर आना बिल्कुल ही बन्द हो गया। उनके परम-प्रिय शिष्य अश्विनीकुमार को इस बात का पता चला कि गुरु देव बीमार हैं तो वे तुरन्त उनके दर्शनों के लिये चले गये। अश्विनी बाबू कमरे में प्रवेश करते हुए काफी गंभीर हो गये। दुःख भरे स्वर में उन्होंने गुरुदेव को प्रणाम किया और आशीर्वाद पाकर समीप की चारपाई पर बैठ गये।


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