भक्त थक गया था। पाँव सूज गये थे और उन पर छाले पड़ गये थे। खाने के लिए अन्न भी न बचा था। शरीर दुर्बल पड़ गया, पर उसे अभी

April 1966

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इटली के वीर सेनानी गैरीबाल्डी ने अपनी जीवन-काल में लिखा है- “युद्ध में मेरी विजय और साहस को देखकर मेरे मित्र बड़े विस्मय में हैं और वे समझते हैं कि मैं किसी दैवी शक्ति का प्रयोग करता हूँ। पर मैं यहाँ सत्य बता देना चाहता हूँ कि मेरे साहस और धैर्य के मूल कारण ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास ही है। मेरा विश्वास है कि जब तक मेरी माता मेरे प्राण-रक्षार्थ ईश्वर के ध्यान में निमग्न रहेगी, तब तक मुझे कोई भी विपत्ति नहीं छू सकती। मैं ईश्वर के भरोसे पूर्ण निश्चिन्त हूँ। अब प्राणों की रक्षा के लिए मुझे जरा भी शंका नहीं है।”


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