उस दिन सूरज बोला-लो अब मैं जाता हूँ, चलते चलते थक गया तनिक सुस्ताता हूँ।
लो चाँद सम्हालो राज पाट इस धरती का, अब तुम पर है दायित्व तिमिर-मय जगती का॥
सुन कर सूरज की बात हुआ कृश गात चाँद, सहमा सहमा बोला-सूरज से बात चाँद।
हो गये चतुर्दश दिवस क्षीण हो रही कला, लो आ पहुँचा अबसान निगलने तिमिर चला॥
मैं चरण मृत्यु की ओर अमा में धरता हूँ, फिर लूँगा नूतन जन्म अभी तो मरता हूँ।
रवि राशि का सुन संबाद, मृतिका करण बोले, धरती से शीश निकाल प्राणपण से बोले॥
तुम दोनों ही विश्राम करो, हम जागेंगे, हम नहीं ज्योति कण आज किसी से मांगेंगे।
हमने प्रण ठाना है तम तोम निगलने का, हम लेते हैं दायित्व अमा में जलने का॥
हम धरती का अपमान नहीं होने देंगे, अब अपनों पर अहसान नहीं होने देंगे।
हम माटी के कण हैं पर सब कुछ वारेंगे, तुम डर जाओ हम नहीं तिमिर से हारेंगे॥
वक्षस्थल चीरेंगे हम रजनी काली का, जग पर्व मनायेगा युग युग दीवाली का।
हम नई ज्योति भर भू-अम्बर में जागेंगे, तब अमा क्षमा मानेगी नर वर मांगेंगे॥
उस दिन दीपों की छवि यह धरा निहारेगी, जब ऊषा रानी खुद आरती उतारेगी।
यह कहकर शत-शत दीपों का अभिमान जगा, वे तिमिर-अणों को लगे चीर ने ध्यान लगा॥
तमने ताना काला बितान भूमण्डल पर, जग उठे मृत्तिका दीप ज्योति के शर लेकर।
उनकी लघुता पर, साहस पर हंस उठा तिमिर, मुझसे लड़ने आये दीपक किस क्षमता पर॥
जब छुपे सूर्य और चाँद आज मुझसे डरकर, तो इनकी क्या सामर्थ्य हिला पायें तिलभर।
पर दीप मौन व्रत धार लगे तिल-तिल जलने, तम की छाती फट उठी लगा पल-पल घुलने॥
हो गया पराजित तिमिर भोर तक जले दीप, तम झंझाओं के बीच अकम्पित जले दीप।
तब से दीपों का विजय पर्व ये आता है, तम से लड़ने वाला ही पूजा जाता है॥
--श्री लाखन सिंह जी भदौरिया ‘शैलेन्द्र’
*समाप्त*