विजय-व्रत की अनिवार्य आवश्यकता

November 1965

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देश में अन्न की इन दिनों कमी है। जितना उत्पादन होता है, उससे काम नहीं चलता। 8 से 12 प्रतिशत तक बाहर से मंगाना पड़ता है। इसमें से अधिकाँश अमेरिका से खरीदना पड़ता है और उसके बदले बड़ी कठिनाई से प्राप्त होने वाली विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है। इन दिनों अमेरिका भारत पर यह दबाव डाल रहा है कि यदि उसे उसके यहाँ से गेहूँ लेना हो तो पाकिस्तान को काश्मीर देने के उसके प्रस्ताव को माने अन्यथा गेहूँ बन्द कर दिया जायगा।

ऐसी स्थिति में हमें अपने राष्ट्रीय गौरव की प्रभुसत्ता की और प्रादेशिक अखण्डता की रक्षा करने के लिये इस प्रकार के दबावों को भी समाप्त करना होगा। अन्न की दृष्टि से स्वावलम्बी होना, आज की हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसे किसी भी कीमत पर पूरा करना चाहिये।

किसान अन्न उगाने को प्राथमिकता दें। जो फसलें जल्दी आती हैं और अधिक पैदा होती है उन्हें बोवें। सिंचाई के साधन बढावें। कोई जमीन बिना बोई न रहने दें, तथा शाक-भाजी अधिक उगावें। अनाज इस प्रकार सुरक्षित रखा जाय कि चूहे और कीड़े उसे बर्बाद न करने पावें। बड़ी दावतें बिलकुल बन्द कर दी जायें। थाली में झूठन छोड़ने की गन्दी आदत एकदम बदल दी जाय। कितने ही प्रकार के व्यंजन बनाने की बजाय थाली में कम से कम किस्म की चीजें रहें। इस प्रकार अन्न की बचत हो सकती है। उत्पादन बढ़ाने के लिये खाद, सिंचाई आदि के जो साधन हो सकते हों, उन्हें बढ़ाना चाहिये। घरों में, बगीचों में, आँगनों में जहाँ कहीं भी थोड़ी खाली जगह हो, वहाँ शाक-भाजी उगाने चाहिये। इस प्रकार उत्पादन बढ़ाने में थोड़ा-थोड़ा सहयोग हर दिशा से हो तो समस्या का हल आसानी से हो सकता है। अधिक सन्तान उत्पादन न करके खाने वालों की संख्या बढ़ाने को भी यदि रोकने का प्रयत्न किया जाय तो यह भी एक देशभक्तिपूर्ण कार्य होगा।

सर्व-साधारण को सप्ताह में एक दिन या एक समय अन्नाहार छोड़कर निराहार या शाकाहार पर रहने का ‘विजय व्रत’ करने के लिये तैयार होना चाहिये। व्रत-उपवासों का भारतीय धर्म शास्त्रों में बड़ा महत्व एवं महात्म्य बताया गया है। इससे आत्मा की शुद्धि होती है और भगवान प्रसन्न होते हैं। पार्वती जी ने शंकर से विवाह करने जैसे कठिन कार्य को व्रत उपवास के द्वारा पूर्ण कर लिया था। राष्ट्र रक्षा के लिये धार्मिक दृष्टि से भी विजय व्रत का बहुत महात्म्य है। इससे राष्ट्रीय विजय में निश्चित रूप से सहायता मिलेगी। आध्यात्मिक उपचार की दृष्टि से इसे हर नर-नारी, बाल-वृद्ध को करना चाहिये। देश-भक्ति की दृष्टि से आज की संकट बेला में इतना त्याग तो हमें करना ही चाहिये कि सप्ताह में एक दिन या एक समय निराहार न सही शाकाहार से तो काम चला ही लें। अन्न न लें। इस प्रकार अन्न की जो बचत होगी उससे उत्पादन न बढ़ने पर भी काम चल जायगा और अमेरिका आदि से अन्न मँगाने को न तो विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ेगी और न काश्मीर देने का दबाव सहना पड़ेगा।

अखण्ड-ज्योति परिवार के हर सदस्य को यह व्रत तुरन्त आरम्भ कर देना चाहिये। अपने परिवार के लोगों को इसके लिये तैयार करना चाहिये और इस आन्दोलन को व्यापक बनाने के लिए प्रचार, पर्चे, भाषण, प्रतिज्ञा पत्र आदि जहाँ जो संभव हो, वह करना चाहिये। विजय व्रत व्यापक बनाने में हमें कुछ उठा न रखना चाहिये। इस व्रत को ग्रहण करने वालों में स्वभावतः देशभक्ति की भावना बढ़ेगी, वे अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों को समझेंगे और यह समझदारी आगे चलकर अन्य राष्ट्र-उन्नति के कार्यों में सहायक होगी।


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