आहार की इस गन्दगी से बचें तो अच्छा है।

November 1965

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अहार से मन पर पड़ने वाले सूक्ष्म प्रभाव को देख कर हिन्दू धर्म में खान-पान की शुद्धता को अत्यधिक महत्व दिया गया है। जी चाहे जहाँ और जिसके हाथ का शुद्ध-अशुद्ध आहार प्राप्त करने में निषेध पूर्ण वैज्ञानिक है। हिन्दुओं के रीति रिवाजों का अध्ययन करने वाले विदेशी अन्वेषकों ने भी यह मान लिया है कि अनुचित स्थानों में गन्दगी से भरा भोजन करना शारीरिक तथा मानसिक दोनों तरह से स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है। किन्तु इस विशाल और पवित्र देश में आहार की सफाई के क्षेत्र में व्यापक उदासीनता नजर आती है। विदेशी ढंग के भयंकर गन्दगी भरे होटल, रेस्तराँ तथा सिनेमाओं में भोजन तथा जलपान करने की घृणित दुष्प्रवृत्ति यहाँ भी निरन्तर बढ़ती जा रही है। पाश्चात्य नकल और हमारी लापरवाही के कारण चारों ओर गन्दगी का यह घिनौना वातावरण बढ़ता जा रहा है और इससे जन स्वास्थ्य को भयंकर खतरा उपस्थित हो रहा है।

आधुनिक सभ्यता की होड़ में इस समय नैतिक मर्यादाओं का कितना उल्लंघन हो रहा है, इसका प्रत्यक्ष दर्शन शहरों में हो जाता है। चूल्हे, चौके की सफाई मिटा कर लोग घृणित होटलों में खाना पसन्द करते हैं। सार्वजनिक स्थानों की गन्दगी के बीच जिस उत्साह के साथ लोग खान-पान करते हैं, वह ऐसी समस्या है जिसे रोकना समाज की स्वास्थ्य-स्थिरता की दृष्टि से तो उपयोगी है ही, नैतिक दृष्टि से भी कम महत्व पूर्ण नहीं। इस कुरीति में अब महिलायें तथा बालिकायें भी साथ देने लगी हैं। अतः इस समस्या का निदान ढूँढ़ना अब नितान्त आवश्यक हो गया है।

शहरी की किसी गली में जाइये उधर ही शानदार बोर्ड लगे होटल दिखाई देंगे। जहाँ जाइये, जिधर जाइये, आपको भोजन तैयार मिलेगा। मजदूर, नौकरी पेशे वालों के अतिरिक्त अब गृहस्थ तथा विद्यार्थी आदि भी इन स्थानों में भोजन करना पसन्द करते हैं। चाय तथा अन्य पेय पदार्थों का प्रचलन आम हो गया है। इतना तो प्रायः हर शहरी कर लेता है। होटलों की बढ़ोतरी से ही पता चल जाता है कि उनकी बिक्री कितनी तेजी से हो रही है, जिस गति से होटलों की संख्या बढ़ रही है उसी गति उनकी गन्दगी और स्वास्थ्य का खतरा भी बढ़ रहा है। उनकी आन्तरिक व्यवस्था को देखकर लोगों से यह अनुरोध करने को विवश होना पड़ता है कि स्वास्थ्य एवं समाज की नैतिकता को बचाये रखने के लिये वे इनका उपयोग करें तो अच्छा है।

किसी भी होटल में जाइये भीड़ का ताँता देखते ही बनता है। इनमें सब तरह के बीमार, गन्दे, अस्वस्थ व्यक्ति बराबर आते रहते हैं और वस्त्रों तथा जूतों के साथ लाई हुई गन्दगी का एक अंश छोड़ते जाते हैं। शाम तक बाहरी गन्दगी से होटल पूरी तरह भर जाता है और इस तरह उस गन्दगी का पूरा संग्रहालय बन जाता है।

इसके बाद फर्नीचर की स्थिति पर नजर दौड़ाइये। इसे न तो कभी बाहर निकाल कर धूप से सेका जाता है न ही गर्म जल से इसकी सफाई की जाती है। जहाँ भोजन पकता है, वहाँ एक प्रकार के कीड़े पैदा हो जाते हैं जो इन फर्नीचरों की दराजों में छुपे रहते हैं। कुछ कीटाणु इतने छोटे होते हैं जो दिखाई तो नहीं देते किन्तु वहाँ की वायु में समाये हुए रहते हैं और जो भी लोग वहाँ जाते हैं, साँस के साथ उनके शरीर में प्रवेश करते रहते हैं। मेजों, कुर्सियों की जिस ढंग से सफाई की जाती है, वह और भी घृणित है। कई दिनों का पुराना कपड़ा जो जूठन से भरा हुआ होता है- उस कपड़े से और भोजनकर्त्ताओं द्वारा मेजों पर गिराये गये जल से उन्हें साफ कर दिया जाता है। इस प्रकार वह सफाई भी गन्दगी बढ़ाने वाली होती है। मेजों में अजीब किस्म की सड़ाँद पैदा हो जाती है।

फर्नीचर की तरह आले, अलमारी, दराज तथा नित्य प्रयोग में आने वाले बर्तनों की भी यही अवस्था होती है। उनमें रोज की गन्दगी का कुछ न कुछ अंश शेष बचा रह जाता है, जो हर दूसरे दिन के ताजे भोजन को भी गन्दा करने में पूरी मदद देता है। खान-पान की वस्तुओं में उससे अधिक लापरवाही बरती जाती है। अपना लाभ देखने वाले होटल मालिकों को औरों के स्वास्थ्य का कुछ भी ध्यान नहीं रहता। शाम तक जो सब्जी शेष रह जाती है, उसे दूसरे दिन की सब्जी तथा दाल में मिलाकर उसमें मिर्च, मसाले, खटाई आदि मिलाकर इस योग्य बना दिया जाता है कि लोग यह न समझ सकें कि इसमें बासी भोजन मिला दिया गया है। कई बार तो ऐसे भोजन पकड़े गये हैं जिनमें कीड़े-मकोड़े तथा अखाद्य पदार्थ तक पाये गये हैं। दाल-सब्जी की तरह गूंथे हुये आटे का प्रयोग कई दिनों तक किया जाता रहता है। आटे को ढकने वाले कपड़े, तथा अन्य खुले गन्दे खाद्य पदार्थों को देखकर अरुचि होती है, लगता है कैसे इन गन्दे पदार्थों को लोग उदरस्थ करते होंगे।

जिस स्थान पर होटल का नौकर जूठे बर्तनों की सफाई करता है, उसे देखने का अवसर मिल जाय तो किसी को भी घृणा आये बिना न रहेगी। खचाखच भीड़ में बार-बार स्वच्छ जल पाकर बर्तनों को धोने की फुरसत किसे होती है? एक टब या बड़े-से बर्तन में कई दिनों का गन्दा पानी भरा होता है। वहीं पास में कोई गन्दा कपड़ा पड़ा हुआ होता है। साफ करने वाला लड़का जूठे बर्तनों तथा प्लेटों को उस गन्दे पानी में डुबो कर बाहर निकाल लेता है और उसी गन्दे कपड़े से पोंछकर दुबारा इस्तेमाल के योग्य बना लेता है। किन्तु यदि किसी खुर्दबीन जैसे यन्त्र से देखा जाय तो इन बर्तनों में असंख्यों कीटाणु तथा गन्दगी के कण शेष रह जाते हैं। उन्हीं में बार-बार लोग भोजन करते रहते हैं।

होटलों में आने वाले लोगों में कितने ही ऐसे भी होते हैं जिन्हें कोई छूत की बीमारी होती हैं मुँह की गन्दगी तो प्रायः सभी में होती है। चाय आदि के जो गिलास इस्तेमाल किये जाते है उनमें, सफाई का उचित प्रबन्ध न होने के कारण दूसरों की बीमारी के कीटाणु लटके रह जाते हैं और इस तरह गन्दगी तथा बीमारी के कीटाणुओं का आदान-प्रदान चलता रहता है।

कभी-कभी इस क्रिया में होटलों में नौकर, वैरे या वेटर भी पूरा साथ देते हैं। खाये हुये व्यक्ति की जूठी थाली उठाकर ले जाते हैं और बिना हाथ साफ किये हुये नये मेहमान को नई थाली लगाकर पेश कर देते हैं। पहले की गन्दगी हर दूसरे तक पहुँचाने का कार्य ऐसे वैरे कुशलतापूर्वक पूरा करते रहते हैं।

भीतरी गन्दगी तो होती है, प्रायः खाद्य पदार्थ भी खुले रखे जाते हैं जिनमें मक्खियाँ भिनभिनाती रहती हैं। सड़क पर चलने वाले तेज वाहनों द्वारा उड़ाई हुई धूल, धुआँ आदि के कारण भी वह आहार अशुद्ध होता रहता है और उसका दुष्प्रभाव खाने वालों पर पड़ता रहता है।

होटल के रसोई भाग पर काम करने वाले लोगों की दशा भी कम दयनीय नहीं होती। गन्दे लोगों द्वारा पकाया भोजन भी गन्दा ही हो सकता है। गन्दे हाथों से आटा गूंथना, बीड़ी पीते हुए रोटियाँ पकाना, बीच-बीच उनके भी खाने-पीने का दौर चलता रहता है। इस तरह होटलों में सच पूछा जाय तो गन्दगी पकती और गन्दगी ही खिलाई जाती है। इस तरह लोगों के शरीरों पर उसका दूषित प्रभाव ही पड़ता है जो नियमित भोजन करने वालों के लिये स्वास्थ्य की खराबी की समस्या पैदा करता है।

यह गन्दगी लोगों से छुपी रहती हो सो बात नहीं, पर लोग इस दिशा में इतने लापरवाह होते हैं या यों कहना चाहिये कि वे आधुनिक सभ्यता के रंग में इतना रंगे हुये हैं कि उन्हें यह सोचने का अवसर भी नहीं मिलता कि यह गन्दगी कितनी हानिकारक हो सकती है।

आहार न केवल स्वास्थ्य के लिये वरन् आत्म-विकास, दीर्घ-जीवन तथा मनोबल की प्राप्ति का भी साधन है। शास्त्रकार ने आहार से जीवन की प्रत्येक गति विधि को प्रभावित होना बताया है। भारतीय जीवन में इसीलिये भोजन में अनेक धार्मिक प्रतिबन्ध लगाये गये हैं। कोई स्वच्छ होटल भी हो सकते हैं, उन्हें छोड़कर इन गन्दे होटलों तथा मलीन सार्वजनिक स्थानों में आहार लेना इस दृष्टि से बहुत हानिकारक है। आहार की शुद्धता पर हमारा ध्यान जाना ही चाहिये। चूल्हे- चौके को जितना शुद्ध व पवित्र रखा जाय उतना ही अच्छा। आहार की गन्दगी से हमें स्वास्थ्य व नैतिक जीवन का संरक्षण जरूर करना चाहिये।

युग-निर्माण आन्दोलन की प्रगति


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles