Quotation

November 1965

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मनुष्य का आचरण उन विभिन्न शक्तियों का परिणाम है जो उसके जीवन पर अपनी क्रियाएं और प्रतिक्रियाएँ करती हैं, और हम स्वयं ही जिसका केन्द्र-बिन्दु हैं- चूल हैं, प्रधान आधार हैं। ऐसे ही परिणामों के संयुक्त फलों से समाज का या समाजिक विधान का निर्माण होता हैं।

-डॉ0 पट्टाभी

सदाचार भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। यह हमें अपने पूर्व पुरुषों से बहुत बड़ी जायदाद के रूप में मिला है। विश्व में हमारी सर्वोपरिता का कारण भी यही हैं। गीता, रामायण आदि सभी ग्रन्थों ने इस बात को माना है कि व्यक्ति के विकास में सद्जीवन का योग ही धर्म हैं। लगन, त्याग, अध्ययन, शान्ति, प्रेम, शालीनता, संयम, पावनता, शक्ति, क्षमा-यह सब सद्जीवन के गुण माने गये हैं। हमारा जीवन इनसे विमुख न होना चाहिये। हमें ऋषियों ने यही सिखाया हैं। हम इस मार्ग पर बढ़ें तो फिर पूर्व सम्पदाओं के स्वामी बन सकते है। अपनी खोई हुई उच्च आध्यात्मिक स्थिति पुनः प्राप्त कर सकते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles