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November 1965

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मनुष्यता में जो कुछ महान और सत्य है, वह सदा हमारे द्वार पर प्रतीक्षा करता रहता है कि हम उसको निमंत्रित करें। उससे यह प्रश्न करना कि वह किस देश का है, हमारा काम नहीं है, किन्तु उसका अपने घर में स्वागत करना और जो कुछ उत्तम से उत्तम वस्तु हमारे पास है, वह उसके सम्मुख भेंट करना ही हमारा कर्त्तव्य है। ‘अतिथि देवो भव’।

-टैगोर

उनका कहना था कि आंखें खोलो, अपने चारों और देखो, निर्भीक बनो और अपना पथ आप निर्धारित करो। मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपनी समस्याओं का आप मुकाबला करे। जीवन के सत्य की खोज स्वयं ही करे। स्वयं खोजा हुआ आधा सत्य भी दूसरों के बतलाये हुये पूरे सत्य से अधिक मूल्यवान होता है। स्वयं स्वाधीन बनो। आत्मा की स्वाधीनता ही सर्वश्रेष्ठ निधि हैं, सर्वोत्तम उपलब्धि है।


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