ईश्वरचन्द विद्यासागर एक दिन अपने मित्र के साथ एक गाँव जा रहे थे। रास्ते में हैजा से आक्रान्त एक दीन-हीन व्यक्ति मूर्छित अवस्था में पड़ा मिला। विद्यासागर उसकी सफाई करने पास के अस्पताल में पहुँचाने का उपक्रम करने लगे।
साथी मित्र ने कहा- हम लोग आवश्यक काम से जा रहे हैं। उस छोटे काम को कोई और कर लेगा, हम लोग अपना कार्य क्यों छोड़े?
विद्यासागर ने कहा- मानवता की सेवा से बढ़ कर और कोई काम बढ़ा नहीं हो सकता। उस निस्सहाय पीड़ित की उपेक्षा करके अपनी निष्ठुरता ही तो हम लोग प्रमाणित करेंगे। निष्ठुर व्यक्ति कोई कार्य भला नहीं कहा जा सकता।