महान अन्वेषक माइकेल फैरेडे

March 1964

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माइकेल फैरेडे का नाम वैज्ञानिक जगत में बड़े सादर के साथ लिया जाता है। उसने विद्युत सम्बन्धी अनेकों महत्वपूर्ण खोजें की हैं। चुम्बक से बिजली उत्पन्न करने का फैरेडे को ही श्रेय मिला। आज-कल टेलीफोन व्यवस्था जिन सिद्धांतों पर आधारित है वह इन्हीं की जीवन साधना का परिणाम है।

फैरेडे लन्दन में एक ऐसे लुहार के यहाँ जन्में जिसके पास न रहने को घर और न खाने को अन्न था। एक पुराने अस्तबल की छत पर टूटे छप्पर में वह लुहार रहता था। उसके चार बच्चे थे जिन्हें प्रायः वस्त्रों के अभाव से सर्दी में ठिठुरना पड़ता था और कई दिन ऐसे भी निकलते थे कि एक रोटी के चार टुकड़े करके बच्चों को बाँट दी जाती और वे बेचारे उतने में ही सन्तोष करके सो जाते। इन्हीं बच्चों में एक वैज्ञानिक फैरेडे भी था।

उसने अपना रास्ता आप बनाया। धनी माँ-बाप के लडैते बेटो को जो साधन मिलते हैं और इनके सहारे वे आगे बढ़ते हैं, फैरेडे को वह सब कहाँ नसीब था। एक-दो वर्ष ग्राम्य पाठशाला में पढ़ने के बाद जैसे ही वह कुछ कर सकने लायक हुआ उसे कमाने के लिए कुछ करने को विवश होना पड़ा। उसे अखबार बेचने वाले के यहाँ एक काम मिला कि पाठकों के पास अखबार ले जाय और जब तक वे पढ़ न लें तब तक खड़ा रहे। फिर उनसे वापस लेकर दूसरे को पढ़ाने जाय। घन्टों खड़ा रहना पड़ता तब एक पैसा प्रति ग्राहक मजदूरी मिलती। उस जमाने में खरीद कर अखबार पढ़ने वाले कम थे, एक अखबार को कितने ही आदमी पढ़ते और लौटाते थे। फैरेडे चार-छह पैसे रोज की मजदूरी मुश्किल से कमा पाता।

पीछे उसने जिल्दसाजी सीखी। एक जिल्दसाज के यहाँ नौकर हुआ। जो वैज्ञानिक पुस्तकें जिल्द बँधने आतीं उन्हें यह पढ़ डालता। वैज्ञानिक व्याख्यान जहाँ होते सुनने जाता और घर पर आकर घंटों वैज्ञानिक तथ्यों के ऊपर विचार करता। दुर्भाग्य से इन्हीं दिनों उसके पिता का देहान्त हो गया। माता तथा भाइयों के निर्वाह का बोझ उसके ऊपर आ गया। अब मेहनत अधिक करनी पड़ती, समय कम बचता फिर भी वह निराश न हुआ वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न उसने जारी ही रखा।

एक दिन वह साहस बटोर कर हम्फी डेबी से मिला जो इन दिनों वैज्ञानिकों की रायल सोसाइटी के प्रधान कार्यकर्ता थे। उसने रायल सोसाइटी में कुछ काम मिलने की प्रार्थना की ताकि वह अपनी रुचि के अनुसार प्रगति कर सके। सर हम्फी ने उसे झाड़ू लगाने और औजार साफ करने की नौकरी दे दी। इसे पाकर उसकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। नौकरी का काम पूरी तत्परता से करना और बचे हुए समय में वैज्ञानिकों से संपर्क बढ़ाकर अपनी ज्ञान वृद्धि करना। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और स्वतन्त्र रूप से बीस साल तक शोध कार्य किया तथा विद्युत सम्बन्धी अन्वेषणों में वैज्ञानिकों की सभा के सदस्य बनाये गये और विज्ञान जगत में भारी सम्मान प्राप्त किया।

वे कहा करते थे-”मैं केवल इतना चाहता हूँ कि अपने श्रम से मानव के ज्ञान के भण्डार की कुछ उन्नति, वृद्धि कर सकूँ। बस इतनी-सी मेरी महत्वाकाँक्षा है।” उनमें अपने विषय का इतना अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था कि संसार भर के वैज्ञानिक उनसे परामर्श करते थे। उनकी कृतियों के बारे में मि. ग्लैडस्टोन ने कहा था-”वैज्ञानिक ज्ञान की इन अद्भुत कृतियों से संसार बहुत समृद्ध और उपकृत हुआ है।”

भूखे मरने वाले, टूटे छप्पर में रहने वाले, अखबार पढ़ाने और जिल्दसाजी करने वाले, केवल दो कक्षा पढ़े लड़के को फैरेडे बनने में कितना कठिन श्रम करना पड़ा, कितने धैर्य और साहस से काम लेना पड़ा इसका ज्ञान बहुत थोड़े लोगों को है। उसने अपना एक-एक दिन जीवन-युद्ध के रूप में काटा। एक ओर गरीबी, तथा साधन-हीनता की कठिनाई दूसरी और ऊँची महत्वाकाँक्षा इन दोनों का समन्वय करने में उन्हें अपनी दिनचर्या और मानसिक सन्तुलन पूरी तरह सँभालना पड़ा। औरों की तरह यदि वे अभावों से घबड़ा जाते, कठिनाइयों को देखकर निराश हो जाते, उस गई गुजरी स्थिति में ही अनुकूलता उत्पन्न न करते तो वे इतनी बड़ी मंजिल कदापि प्राप्त न कर पाते।


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