सत्यस्य वचनं साधु न सत्याद्विद्यते परम्।
सत्येन विधृतं सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्॥
सत्य से बढ़कर कुछ भी नहीं, सत्य में ही सब कुछ प्रतिष्ठित है। सत्य से ही प्रतिष्ठा बढ़ती है।
प्रमादी धरती के भार माने जाते हैं, उन पर कृपा करके देवता भी अपनी उदारता का दुरुपयोग क्यों करें। एक बार कृपा कर भी दी जाय तो अपने दुर्गुणों के कारण अकर्मण्य को दूसरे दिन फिर दुर्भाग्य का ही सामना करना पड़ेगा। यह सोच कर दैवी कृपा भी उनसे दूर ही रहती है। हम प्रगतिशील पुरुषार्थी बनें तो दैवी अनुग्रह भी सहज प्राप्त होने लगेगा।