श्रद्धा को अखण्ड ही रखा जाय

March 1964

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अखण्ड-ज्योति परिवार के प्रत्येक परिजन को रजत जयन्ती के प्रेरणा पर्व में अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करने के लिए आमंत्रण दिया गया था। प्रसन्नता की बात हैं कि अधिकाँश परिजनों ने सन्तोषजनक उत्साह के साथ उसमें भाग लिया है। जो सज्जन किसी कारणवश दिसम्बर अंक में छपी पंच-सूत्री योजना के अनुसार अभी कोई प्रक्रिया कार्यान्वित नहीं कर सके उनसे भी यह आशा की जा रही है कि अगले दो तीन महीनों के भीतर किसी न किसी रूप में जयन्ती मनाने के माध्यम से युग-निर्माण योजना को व्यापक बनाने के लिए कोई न कोई कदम जरूर उठावेंगे।

पिछले मास रजत-जयन्ती पर जिन्होंने अपनी श्रद्धा, सक्रियता, कर्तव्य परायणता और सद्भावना का परिचय दिया है उन्हें आशा भरी दृष्टि में देखा जा रहा है और उनसे यह आशा की जा रही है कि युग-निर्माण के इस महान यज्ञ में वे आगे भी समय-दान की आहुति निरन्तर देते रहें और अपने सत्प्रयत्न को जयन्ती के अवसर पर प्रकट हुआ सामयिक उफान मात्र न रहने देकर उसे अखण्ड ही बनाये रहें। अखण्ड-ज्योति के प्रति अखण्ड श्रद्धा ही शोभा देगी।

जिन सज्जनों ने भारी प्रयत्न करके अथवा अपने ग्राम में पैसा खर्च करके जिन महानुभावों को अखण्ड-ज्योति का ग्राहक-युग-निर्माण योजना का सदस्य बनाया है, वे आगे वह भी करें कि उनसे मिलने-जुलने की प्रक्रिया क्रमबद्ध रूप से जारी रखें और यह प्रयत्न करते रहें कि वे सज्जन न केवल ध्यानपूर्वक स्वयं ही अखण्ड-ज्योति पढ़ा करें वरन् अपने कुटुम्बियों को भी उसे पढ़ने-सुनने का अवसर दिया करें।

किसी के आग्रह संकोच में लोग पैसे तो दे देते हैं पर पत्रिका पढ़ी नहीं जाती। जिन्हें उपहार में पत्रिका भिजवाई गई है वहाँ भी कई बार ऐसा ही होता है। इसलिए बार-बार मिलते-जुलते रह कर या पत्र लिख कर यह प्रयत्न करना चाहिए कि जिन्हें सदस्य बनाया गया है वे उसे पढ़ने में अभिरुचि लें और अपने संपर्क के दूसरे लोगों को भी उस ज्ञान से लाभान्वित किया करें। एक भी अखण्ड-ज्योति की प्रति ऐसी न हो जिससे कम से कम दस व्यक्तियों ने लाभ न उठाया हो। यह कूड़े-कचरे में पड़ी रहने देने की वस्तु नहीं वरन् युग-निर्माण की प्रेरक अग्नि है जिससे समुचित गर्मी और रोशनी प्राप्त होती रहनी चाहिए।

रजत-जयन्ती पर जिनने अपनी श्रद्धा और तत्परता का परिचय दिया है उनसे विशेष रूप से यह आग्रह है कि वे अपने नगर में ‘अखण्ड-ज्योति’ परिजनों से संपर्क स्थापित करके उन्हें पत्रिका ध्यानपूर्वक पढ़ने की प्रेरणा दिया करें। प्रत्येक सक्रिय कार्यकर्ता को अपने जिम्मे कम से कम दस सदस्य तो रखने ही चाहिए और आरम्भ में यह प्रयत्न करना चाहिए कि वे विचारों को पढ़ने में अभिरुचि लें। जिनमें यह रुचि उत्पन्न हो गई उनसे ही यह आशा भी की जा सकेगी कि प्रस्तुत योजना को कार्यान्वित करने के लिए भी कुछ कदम उठा सकेंगे। परिवार की संख्या बढ़ाने का प्रयत्न तो आवश्यक है पर उस बढ़ोतरी की सार्थकता तभी है जब उन विचारों को उनके अन्तःकरण में प्रवेश करने का अवसर मिले। गिनती के बढ़ावे से नहीं कर्मठता के बढ़ाने से ही अभीष्ट पूर्ण हो सकता है।

परिवार के सक्रिय कार्यकर्ताओं को हम अपने दाहिने बायें हाथों की तरह मानेंगे और उन्हें युग-निर्माण के काम से सम्बन्धित करेंगे। प्रत्येक युग-निर्माण से हमें एक ही आशा और एक ही याचना है कि वह इस विचारधारा को लोगों के मनों में प्रवेश करने के लिये जन-संपर्क बढ़ावे और उसके लिये उत्साहपूर्वक समय लगावे। इस प्रक्रिया को अपनाये बिना योजना का पहला कदम एक से दस की परिणित का सफल होना किस प्रकार पूरा हो सकेगा? और यदि इतना भी कार्य इस अगली छमाही में पूरा न हो सका तो जिस आध्यात्मिक नैतिक साँस्कृतिक एवं सामाजिक क्रान्ति के लिये चतुर्मुखी अभियान आरम्भ किया गया है उसमें सफलता कैसे मिलेगी? हमारी प्रबुद्ध चेतना को जागृत रहना चाहिये और अखण्ड-ज्योति की रजत-जयन्ती से जो प्रेरणा ग्रहण की गई है उसे अखण्ड ही रखा जाना चाहिये।


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