सुखद और सरल तो सत्य ही है

December 1961

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निस्संदेह सत्य का मार्ग उतना कठिन नहीं है जितना दीखता है। जो वस्तु व्यवहार में नहीं आती जिससे हम दूर रहते है, वह अजनबी, विचित्र तथा कष्टसाध्य लगती है पर जब वह समीप आती है और व्यवहार में चल पड़ती है तो वह स्वाभाविक एवं सरल बन जाती है। चूँकि हमारे जीवन में झूठ बोलने की आदत ने गहराइयों तक अपनी जड़ जमा ली है। बात-बात में झूठ बोलते है। बच्चों से , हँसी दिल्लगी में, शेखी बघार के लिए, लोगों को आश्चर्य में डालने के लिए, अक्सर अतिरंजित बातें कही जाती हैं। इनसे कुछ विशेष लाभ होता हो या कोई महत्त्वपूर्ण स्वार्थ सधता हो, सो बात भी नहीं है, पर यह सब आदत में सम्मिलित हो गया है इसलिए अनजाने ही हमारे मुँह से झूठ निकलता रहता है।

वेदों में स्थान-स्थान पर सत्य की महत्ता को समझाया गया है और सत्यवादी तथा सत्यनिष्ठ बनने के लिए प्रेरणा दी गई है।

ऋग्वेद1।46।11 की एक श्रुति है -

अभूदु पारमेतवे पन्थ ऋत्स्य साधु

“सत्य का मार्ग चलने में सरल है। यह मार्ग संसार सागर से तैरने के लिए बनाया गया है। यही मार्ग द्युलोक तक गया है।”

स्वार्थ के लिए आर्थिक लाभ के लिए, व्यापार में झूठ बोलना तो आज उचित ही नहीं एक आवश्यक बात भी समझी जाने लगी है। ग्राहक को भाव बताने में अक्सर दुकानदार झूठ बोलते है, घटिया को बढ़िया बताते है, चीज के दोषों को छिपाते है और गुणों को अतिरंजित करके बताते है जिससे भोला ग्राहक धोखे में आकर सस्ती और घटिया चीज को बढ़िया समझ कर अधिक पैसे में खरीद ले। दुकानदार की इस आम प्रवृत्ति को ग्राहक भी समझने लगे है। और वे नहीं मन दुकानदार को झूठा ठग तथा अविश्वस्त मानते है। उसकी बात पर जरा भी विश्वास नहीं करते। अपनी निज की समझ का उपयोग करते है, दुकानदार की सलाह को ठुकरा देते है, दस जगह घूमकर भाव-ताव मालूम करते है, चीजों का मुकाबला करते है, तब अनत में वस्तु को खरीदते है। यह व्यापारी के लिए एक बड़ी लज्जा की बात है कि उसे आमतौर से झूठा ओर बेईमान समझा जाय, उसकी प्रत्येक बात को अविश्वास और संदेह की दृष्टि से देखा जाय। ऐसे लोग भले ही लाभ कमाते है, पर वस्तुतः मानवता के मूल्यांकन में वे बहुत ही निर्धन निम्न स्तर के तथा घटिया लोग है। जिसे अविश्वस्त समझा जाय, जिनकी नीयत पर संदेह किया जाय, जिसे ठग, धोखेबाज और बहकाने वाला माना जाय वह निस्संदेह अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा खो चुका। इतनी कीमती वस्तु खोकर यदि किसी ने धन कमा भी लिया तो इसमें न कोई गौरव की बात हे और न प्रसन्नता की। अपना सामाजिक सम्मान खोकर कई लोग धन कमा लेते है। वेश्याएँ खूब धन कमाती है और ऐश आराम का जीवन बिताती है। लुच्चे, लफंगे, जेबकट और लुटेरे भी अपनी उन्मादी से बहुत पैसे बनाते है और मौज की छानते हैं कोई-कोई भिखमंगे भी संत महन्त, पंडा पुजारी, कोढ़ी कलंकी आदि का रूप बनाकर लोगों की दया ओर धर्म वृत्ति का शोषण करने में खूब सफल होते है और ढेरों दौलत जमाकर लेते है। क्या इनकी प्रशंसा की जाएगी? क्या इनका कोई सराहनीय सामाजिक स्तर गिना जाएगा? नहीं, विचारशील क्षेत्रों में इन्हें निम्न कोटि का इनसानियत से गिरा हुआ व्यक्ति ही गिना जाएगा ऐसी कमाई, जिससे मनुष्य घृणास्पद बनता हो, अपना आत्म सम्मान खोता हो, धिक्कार के ही योग्य है। असत्यता-चाहे वह अपनी चालाकी से किसी क्षेत्र में कितनी ही सफलता क्यों न प्राप्त कर सका हो धिक्कार के योग्य ही माना जायेगा।

लोग सोचते है, असत्य व्यवहार से लोगों को उल्लू बना लेना और अधिक धन उपार्जन कर सकना सरल है। इसलिए वे अपने कारोबार में नकलीपन की भरमार कर डालते है। कई बचकाने लोग अपनी हैसियत बहुत बड़ी बनाने के लिए, खूब फैशन बनाते है और अनाप-शनाप खर्च करते है ताकि लोग यह अनुमान करके कि यह कोई बहुत बड़ा आदमी है उसका आवश्यकता से अधिक सम्मान करने लगे। पर वे यह भूल जाते है कि काठ की हाँडी एक ही बार चढ़ती है, किसी को एक ही बार धोखा दिया जा सकता है। बात आखिर खुलती है, झूठ कितने दिन तक छिप सकती है? जब पोल खुलती है तो सारा गुड़ गोबर हो जाता है। बदनाम व्यापारी का काम अन्त में ऐसा ठप्प होता है कि रोने को मजूर नहीं मिलते। इसी प्रकार औकात से अधिक शेखी बनाने वालों को अन्ततः उपहासास्पद ही बनना पड़ता है। बड़प्पन की छाप किसी पर छोड़ने की अपेक्षा वे औरों की दृष्टि में ओछे एवं ज़लील ही साबित होते है।

विदेशों में जहाँ व्यापार पनपा हे वहाँ उन्होंने सचाई को प्रथम स्थान दिया है। वस्तुओं का मूल्य भले ही महंगा रखा हो, पर भावों में धोखेबाजी नहीं करते और न कुछ बताकर कुछ देते है। समुन्नत योरोपीय देशों में दूध में पानी मिलाकर कोई नहीं बेचेगा । ऐसा कदम कोई करे तो उसे ऐसा ही ज़लील और नीच माना जायेगा जैसा यहाँ बच्चों को उड़ा ले जाने या धतूरा मिला प्रसाद बाँटकर लोगों की पोटली उठा ले जाने वालों को घृणित मानते है। इसी प्रकार वस्तुओं की क्वालिटी तथा कीमत के बारे में भी कोई दुकानदार धोखा न देगा जो वस्तु जैसी है जितने दाम की है उसे एक ही साँस में कह देगा। न ग्राहक का समय नष्ट होगा न दुकानदार का । दुकानदार को न ग्राहक की चापलूसी करनी पड़ती है और न ग्राहक को दस जगह मोल भाव करने तथा चीजों के असली नकली होने का पता लगाने को मारा-मारा फिरना पड़ता है। इसमें दोनों को सुभीता है, दोनों का ही लाभ है।

ईमानदारी में लाभ ही लाभ है। बढ़िया घड़ियाँ बनाने वाली वेस्ट एण्ड वाॅच कम्पनी हर वर्ष करोड़ों रुपया कमाती हे और सस्ती घटिया निकम्मी घड़ी बनाने के अनेकों कारखाने हर साल खुलते और बन्द होते रहते है। फोर्ड मोटर अपने ईमानदार कारखाने को प्रतिदिन करोड़ों रुपया कमा कर देती है जब कि जैसे-तैसे तो जोड़कर निकम्मी मोटरों के कारखाने घाटे का ही रोना रोते रहते है। दूध में पानी, घी में बेजीटेबिल, शहद महंगा भी बिकता है, लाभ भी देता है और साथ ही विक्रेता की प्रतिष्ठा में भी चार चाँद लगाता हैं सचाई का मूल्य कम नहीं है। वह कामधेनु गौ के समान हे यदि पुर्जों उसकी ठीक तरह सेवा कर ले तो पालने वाले को मालामाल कर देती है।

जो बात व्यापार के संबंध में कही गई है वही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू होती है। पारिवारिक जीवन में यदि घर के सब सदस्य परस्पर सचाई का व्यवहार करें तो कलह और वैमनस्य की नौबत ही न आवे। पति-पत्नी के बीच सच्चा प्रेम तभी स्थापित हो सकता है जब दोनों एक दूसरे से किसी प्रकार का दुराव न रखें छल, कपट, चालाकी, चोरी की बात जहाँ शुरू हुई कि प्रेम में अन्तर आया नहीं भाई भाइयों में, पिता पुत्र में यही विष, फूट और द्वेष के बीज बोता है। यदि परिवार के सब लोगों का अन्तःकरण शुद्ध हो, व्यवहार में सौजन्य एवं सत्य का समावेश हो तो वह कुटुम्ब देव परिवार बन सकते है। वहाँ प्रेम और आनन्द की निर्झरिणी सदा प्रवाहित होती रह सकती है।


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