“चाहे शरीर में शस्त्रों का घाव लगता हो और चाहे प्रिय युवती का स्पर्श होता हो, पर दोनों अवस्थाओं में जिसे किसी प्रकार का विकार नहीं होता, उसी धैर्यशाली पुरुष को परम पद में स्थित समझना चाहिये ।”
-योगवाशिष्ठ