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December 1961

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“दैवी विधान का चक्र निर्मम भाव से घूमता रहता है। जो इस विधान के अनुकूल चलता है, वह इस पर सवारी करता है। पर जो अपनी इच्छा को इस विधान के विरोध में अकड़ता है, वह अवश्य ही कुचला जाता है।”

“त्याग और ज्ञात एक ही वस्तु है। जो ज्ञान त्याग कर पर्यायवाची है वह सत्य ज्ञान है, वास्तविक आत्मा का ज्ञान है, तुम्हारे वास्तविक स्वरूप का ज्ञान है।”

“त्याग तो आपको सर्वोत्तम स्थिति में रखता है। यह आपको उत्कर्ष की स्थिति में पहुँचा देता है, आपकी शक्तियों को कई गुना कर देता है, आपके पराक्रम को दृढ़ कर देता है, वह आपकी चिंताओं तथा भय को हर लेता है और इस प्रकार आप निर्भय तथा आनन्दमय हो जाते है।”

“परमानन्द का अनुभव करने के लिये -भाव लाने की भी आवश्यकता है अर्थात् देश के हेतु प्राण न्यौछावर करने के लिये प्रतिक्षण तत्पर रहा जाय।”

“किसी देश में उस समय तक एकता और प्रेम नहीं हो सकता जब तक लोग एक दूसरे के दोषों पर जोर देते रहेंगे। -


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