दुनियाँ में पैदा हुए विद्वानों में से चाहे हमारी बुद्धि सबसे प्रखर क्यों न हों फिर भी हम ईश्वर तक नहीं पहुँच सकते। बुद्धिमान होकर भी मनुष्य दस गुना अधिक स्वार्थी बन सकता है। हृदय का संस्कार हुए बिना उच्चतम बौद्धिक शिक्षा पाकर भी मनुष्य और घमंडी हो जाते हैं। यदि हृदय और बुद्धि में विरोध उत्पन्न हो तो तुम हृदय का अनुसरण करो। क्योंकि बुद्धि केवल आलोक के क्षेत्र में काम कर सकती है। वह उसके परे नहीं जा सकती। वह केवल हृदय ही है जो हमें उच्चतम भूमिका में आरुढ़ करता है। वहाँ तक बुद्धि कभी नहीं पहुँच सकती। बुद्धि से कभी अन्तः स्फूर्ति नहीं प्राप्त हो सकती। अन्तः स्फूर्ति का कारण केवल ज्ञानोदभासित हृदय ही है। केवल बुद्धि प्रधान किन्तु हृदय शून्य मनुष्य कभी स्फूर्तिमान नहीं हो सकता। प्रेममय पुरुष की समस्त क्रियायें उसके हृदय से ही अनुप्राणित होती हैं। एक शिक्षित व्यक्ति एक साथ ही बुद्धिमान और शैतान हो सकता है किन्तु जिसके हृदय में वह शैतान कभी कभी नहीं घुस सके वही वन्दनीय है चाहे वह अनपढ़ किसान ही क्यों न हो।
-स्वामी विवेकानन्द