ऐसी वाणी बोलिए, मनका आता खोय (kavita)

December 1961

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ऐसी वाणी बोलिए, मनका आता खोय।

बोली तो अनमोल है, जो कोइ जानै बोल।

कुटिल वचन सबसे बुरा, जार करे तर छार।

खोद खाद धरती सहै, कूट काट बनराय।

वाद विवादे विष घना, बोले बहुत उपाध।

जहाँ दया तहिं धर्म है,जहाँ लोभ तहिं पाप॥

जबहिं नाम हिरदै धरयौ, भयो पापको नास।

रूखा सूखा खाय कर, ठंडा पानी पीय।


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