1962 का अष्टग्रही-योग

December 1961

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(श्री शरद माझरकर)

यहाँ पर कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किये जाते है जब पंच-ग्रह से लगा सप्त-ग्रह-योग हमें देखने को मिले। सितंबर 1861 में सिंह-राशि में छह ग्रह एक साथ थे। सिंह-राशि युद्ध व पौरुष की सूचक है। फलस्वरूप अमेरिका का चार साला तथा इटली का युद्ध सामने आया। 20-12-1901 को धनु-राशि में पंच-ग्रह-योग उपस्थित था जिसके कारण विक्टोरिया का राज्य-काल समाप्ति पर आया। नवम्बर 1910 के प्रथम सप्ताह में हमने सप्त-ग्रहयोग तुला-राशि में पाया। 1921 के अक्टूबर माह में कन्या-राशि में एक होने वाले छह ग्रहों के कारण हमने गाँधी का अवज्ञा-आंदोलन भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक पाया। अन्त में, 15 अगस्त 1941 को कर्क-राशि में पंच-ग्रह-योग उपस्थित था जिसके प्रभाव से हमने भरत में विदेशी-शासन का अन्त तथा स्वतः-भारत और पाकिस्तान को जन्म में लेते पाया। ग्रहों की संख्या मात्र से फलादेश करना उचित नहीं, अन्य बातें भी हैं जिन पर विचार करना आवश्यक होता है। कर्क और मकर विशिष्ट संक्रान्ति राशि होने से उनमें होने वाले योग असाधारण महत्व रखते हैं।

आइए अब हम 1962 के योग पर विचार करें। यह योग चन्द्रमा के मकर-राशि में प्रवेश करते ही 3-2-1962 तक अष्टग्रही रहेगा उसके बाद क्रम से सप्त, षष्ठ और पंचग्रही होता जायेगा। 5-2-1962 को प्रातः 5-40 के करीब सूर्य-ग्रहण है। उस समय पर सभी ग्रहों की स्थिति निम्न रहेगी-रवि और चन्द्र 293.51’ मंगल-280.30’ बुध-295.-4’ गुरु 296.45’ शुक्र 295.-55’ शनि 281.57 राहू-116.-18’ और केतू-296.-81’।

वारहमिहिर के अनुसार योग पाँच प्रकार के हैं-1. समाज 2. कोश 3. सन्निपात 4. समागम 5. समावर्त । जब 4 या 5 ग्रह एक ही राशि में मिलते हैं तब समावर्त होता है इसी में जब राहू या केतू मिलता है तो वह संमोह बन जाता है। चूँकि उपर्युक्त योग में शनि-गुरु भी शामिल हैं अतः वह कोश भी हैं। संमोह और कोश साधारण के लिये हानिकारक समझे जाते है। (संमोह कोशौ भयद्रौप्रजानाम्)। इस योग द्वारा प्रभावित दो नक्षत्र हैं-श्रवण और घनिष्ठा। चूँकि सूर्यग्रहण मकर-राशि में है अतः मछलियों का विनाश, मंत्रीगण एवं उनके परिवार की हानि और सैनिक एवं शुद्ध लोगों का नाश सम्भावित है। जहाँ तक मौसम का प्रश्न है इस योग के कारण इंग्लैंड तथा अन्य पश्चिमीय यूरोपीय देशों में बेहद ठंड पड़ेगी। उसी प्रकार अफ्रीकी के दक्षिणी देशों तथा भारत में असाधारण गर्मी पड़ेगी।

सभी विद्वानों के अनुसार हमें चीन एवं उसके आक्रमणों से अत्यन्त सतर्क रहने की आवश्यकता है। कारण हिमालय की ओर से भारत पर आक्रमण की बहुत संभावना है। इस प्रकार चीन की धमकियाँ सत्य में बदलेंगी। अतः हमें हमारी शक्ति एवं सेना को मजबूत बनाने की अत्यन्त आवश्यकता है। उसी प्रकार नेहरूजी की कुण्डली के मारक स्थान पर यह ग्रह-योग उपस्थित हो रहा है जो कि एक अच्छा संकेत नहीं है। नेहरूजी को अपने स्वास्थ्य एवं शारीरिक बचाव के बारे में अत्यन्त ही सतर्क रहने की आवश्यकता है। ये ऐसे संकेत हैं जिनकी अवहेलना करना राष्ट्र-हित में लाभदायक सिद्ध न होगा। खेद है कि योग प्रभाव से हमारे ड़ड़ड़ड़ के नेता, मंत्री, कर्णधारों में आपस में ही अधिक भेदभाव उपस्थित होगा। वे अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के आगे देश-हित को भूल बैठेंगे। विश्व की बदलती हुई राजनैतिक परिस्थितियों के कारण ऐसी निश्चित आशंका हैं कि देश में चुनाव आगे के लिये स्थगित करना पड़ेगा। और यदि चुनाव संभव हो ही गये तो काँग्रेस का विजयी होना निश्चित है। उसी समय देश में आकस्मिक राष्ट्रीय-संकट का उपस्थित होना हर हालत में निश्चित है। चूँकि यह ग्रहयोग हमारे देश की कुण्डली के पाँचवें स्थान पर हैं और पाँचवाँ घर ज्योतिष में बुद्धिमत्ता, ज्ञान आदि का द्योतक हैं, अतः ऐसी अपेक्षा की जाती है कि हमारे नेता जनसाधारण के हितों का बुद्धिमानी पूर्वक ख्याल रखेंगे। यह भी परिलक्षित होता है कि देश के कुछ वयस्क कर्णधार अपनी जगह पर नए खून को आने का अवसर प्रदान करेंगे।

अमेरिका को एक धमकी का डर उपस्थित होगा। दूसरी ओर चीन प्रगति के पथ पर बढ़ेगा। अमेरिका के आखिरी पूर्व और पश्चिमी छोर सबसे अधिक प्रभावित दिखते हैं। लेटिन अमेरिका में सैन्य एकत्रीकरण होगा। अमेरिका व चीन के तथा अमेरिका और क्यूबा के संबन्ध गिर कर बुरे होंगे। उसी प्रकार इंग्लैंड, स्पेन, बेलजियम, अलजीरिया, सौदी अरेबिया आदि भी विभिन्न प्रकार की हलचलों का सामना करेंगे। मध्यपूर्व देशों में प्राकृतिक-कोप एवं सैनिक-क्राँति होगी। काँगों और अन्य अफ्रीकी देशों में भी आन्तरिक।

*समाप्त*


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