प्रभु से प्रार्थना (Kavita)

December 1955

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प्रभु जीवन ज्योति जगादे!

घट घट बासी! सभी घटों में, निर्मल गंगाजल हो।

हे बलशाही! तन तन में, प्रतिभापित तेरा बल हो।।

अहे सच्चिदानन्द! बहे आनन्दमयी निर्झरिणी—

नन्दनवन सा शीतल इस जलती जगती का तल हो।।

सत् की सुगन्ध फैलादे।

प्रभु जीवन ज्योति जगादे।।

विश्वे देवा! अखिल विश्व यह देवों का ही घर हो।

पूषन्! इस पृथ्वी के ऊपर असुर न कोई नर हो।।

इन्द्र! इन्द्रियों की गुलाम यह आत्मा नहीं कहावे—

प्रभुका प्यारा मानव, निर्मल, शुद्ध, स्वतन्त्र, अमर हो।।

मन का तम तोम भगादे।

प्रभु जीवन ज्योति जगादे।।

इस जग में सुख शान्ति विराजे, कल्मष कलह नसावें।

दूषित दूषण भस्मसात् हों, पाप ताप मिट जावें।।

सत्य, अहिंसा, प्रेम, पुण्य जन जन के मन मन में हो।

विमल “अखण्ड ज्योति” के नीचे सब सच्चा पथ पावें।।

भूतल पर स्वर्ग वसादे।

प्रभु जीवन ज्योति जगादे।।

(श्री. स्वामी आनन्दतीर्थ जी महाराज)


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