पहले इसे पढ़ लीजिये।

December 1955

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(1) ‘अखण्ड-ज्योति’ का नया वर्ष जनवरी से प्रारम्भ होता है। सो अधिकाँश ग्राहकों का चन्दा भी दिसम्बर में ही समाप्त होता है।जिनका चन्दा दिसम्बर में समाप्त होता है, उनसे प्रार्थना है कि अपना चन्दा मनी-आर्डर से अविलम्ब भेज दें।

(2) सन् 56 से अखण्ड ज्योति की पृष्ठ संख्या ड्यौढ़ी हो जायगी, किन्तु चन्दा ड्यौढ़ा न करके केवल।।) ही बढ़ाये गये हैं। अब 2।।) नहीं 3) ही चन्दा स्वीकार किया जायगा। एक वर्ष से कम के लिये ग्राहक नहीं बनाये जाते।

(3) कई सज्जन आलस्यवश चन्द समय पर नहीं भेजते, कई मास बीत जाने पर सुधि लेते हैं, तब तक पिछले अंग समाप्त हो जाते हैं, क्योंकि अखण्ड ज्योति उतनी ही छपती हैं, जितने ग्राहकों का चन्दा प्राप्त होता है। वर्ष की फाइल अधूरी न रहे, इस कठिनाई से बचने के लिये चन्दा दिसम्बर मास में ही भेज देना चाहिये।

(4) अखण्ड ज्योति की वी. पी. मंगाना अपने ।।) बिल्कुल व्यर्थ बरबाद करना हैं। 3) चन्दा और ।।) वी. पी. का डाक खर्च कुल 3।।) की वी. पी. पहुँचती हैं और उसके लौटे आने पर इस वी. पी. खर्च की हानि हमें उठानी पड़ती है। इसलिये वी. पी. न मंगा कर मनी आर्डर से चन्दा भेजना ही सब प्रकार सुविधाजनक है।

(5) मनीआर्डर कूपन पर अपना पूरा पता तथा ग्राहक नम्बर लिखना न भूलना चाहिये। नये ग्राहक मनीआर्डर कूपन पर “नये ग्राहक” शब्द अवश्य लिख दे।

(6) जो सज्जन बीच के किसी मास में ग्राहक बने हैं, उन्हें सन् 56 के शेष महीनों का चन्दा भेजकर अपना वर्ष जनवरी से ही आरम्भ करा लेना चाहिये। उन्हें अपना हिसाब इस प्रकार जोड़ना चाहिये:-

“सन् 55 के अंकों का मूल्य 2।।) के हिसाब से काट कर , शेष जो बचे, उसको सन् 56 के 3) में से कम कर लें और शेष पैसा भेज दें।”

(7) यों पिछले वर्षों भी ‘अखण्ड ज्योति’ की कागज छपाई की लागत ग्राहकों से प्राप्त होने वाले चन्दे से मुश्किल से ही पूरी हो पाती थी। फिर इस वर्ष तो पृष्ठ ड्योढ़े किये गये हैं और चन्दा।।) ही बढ़ा हैं। ऐसी दशा में घाटा जाने की निश्चित सम्भावना है। इस कठिनाई की पूर्ति तभी हो सकती हैं जब ग्राहक संख्या बढ़े। आप कुछ ग्राहक बढ़ाने का प्रयत्न करके ‘अखण्ड ज्योति’ की सहायता ओर दूसरी को सद्ज्ञान की-सन्मार्ग की प्रेरणा देने का सत्कार्य कर सकेंगे। इसके लिए आपसे विशेष अनुरोध है।

(8) यहाँ से हर महीने दो बाद जाँच कर ठीक समय पर अखण्ड ज्योति भेजी जाती हैं। 1- पते में गलती, 2- डाक की गड़बड़ी, 3- पता बदल लेने पर भी उसकी सूचना न देना, प्रायः यही कारण अंक न पहुँचने के होते हैं। यदि किसी मास अंक न पहुँचे तो उसी मास ता. 15 के लगभग सूचना देकर दूसरी प्रति मंगा लेनी चाहिये बहुत दिन बाद अंक न पहुँचने की शिकायत मिलने पर-जब वे अंक समाप्त हो चुकते हैं, दुबारा भेजना कठिन होता है।

(9) उत्तर के लिए जवाबी पत्र भेजना तथा हर पत्र में अपना पूरा पता लिखना उत्तर जल्दी मिलने में बहुत सहायक होता है। आचार्य जी से व्यक्तिगत परामर्श के लिए तो जवाबी पत्र भेजना एक नैतिक कर्तव्य भी हैं।

व्यवस्थापक, ‘अखण्ड ज्योति’ प्रेस, मथुरा।


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