सच्चाई का व्यापार।

October 1950

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(श्री स्वामी रामतीर्थ)

किसी भी प्रकार की सफलता प्राप्त करने के लिये सत्य व्यापार परम आवश्यक है। बिना सत्य-व्यापार की तरक्की के, देश की तरक्की नहीं हो सकती। चाहे जिस उन्नत मुल्क की ओर दृष्टि डालो, सत्य-व्यापार ही उसका मूल कारण दिखलाई देगा। हिन्दुस्तान में व्यापार बड़ी बुरी दशा में है, झूठ, प्रवंचना, एवं छल-कपट से भर-पूर है। प्रायः हिन्दुस्तानी सत्य-व्यापार करना नहीं जानते। उद्योग और पुरुषार्थ को काम में न लाकर क्षुद्र-ब्याज के लोभ में हिन्दुस्तानी अपनी पूँजी लगा देते हैं, और आप सुस्त आलस्यग्रस्त होकर चारपाई पर पड़े पड़े, मक्खी हाँका करते हैं। दूसरे देश वाले अपने उद्योग पुरुषार्थ और सत्य-व्यापार से गरीब से धनी, और धनी से कुबेर हो रहे हैं और हिन्दुस्तानी ठीक इसके विपरीत दूसरे मुल्क वालों के सत्य व्यापार एवं उद्योग के फैलाव को देखकर आश्चर्य होता है। शिकागो में मार्शल फील्ड की एक दुकान है। यह 20 मंजिल ऊँची और एक मील लम्बी चौड़ी है। यहाँ नित्य करोड़ों रुपयों का सौदा होता है। इतनी भारी और आला दर्जे की दुकान होने से इतना आश्चर्य नहीं होता जितना कि-ग्राहकों के साथ इतना सद्व्यवहार देखकर होता है। लाखों रुपयों का माल खरीदने वाले से और एक पैसे की दियासलाईयाँ खरीदने वाले से एक सा बर्ताव करते हैं। चाहे कोई कितने ही का खरीदार हो, जब वह दुकान के फाटक पर जायेगा तो शीघ्र ही एक दर्खान कुछ आगे बढ़कर उसकी अगवानी करेगा, और बड़ी नम्रता से उससे विनय करेगा, कि क्या हुक्म है? जब वह कहेगा कि मुझे फलानी चीज की दरकार है या मैं अमुक वस्तु केवल देखना चाहता हूँ तो वह दर्खान उसको उस कमरे में, जहाँ उसके लायक सौदा है, या जहाँ जहाँ वह देखना चाहता है , ले जाएगा, पश्चात् फाटक के कुछ दूर तक उसको पहुँचाकर अदब से सलाम करके वापिस होगा। यह बराबरी का सलूक, यह सच्चाई, यह प्रेम ही व्यापार की उन्नति के मुख्य अंश हैं। वह इनका पूर्ण व्यवहार करते हैं, और इसलिए ही वह व्यापार में इतना बढ़े चढ़े हैं, कि-उनकी बराबरी करना मुश्किल जान पड़ता है। यहाँ हिन्दुस्तानियों की अजब कैफियत है? यहाँ ग्राहकों के साथ एक सा बर्ताव नहीं होता। बड़ी दुकानों से थोड़ा सौदा खरीदने का किसी को हौसला नहीं होता। इसका कारण यह है कि-बड़ी दुकान वाले थोड़ा सौदा खरीदने वाले के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते। छोटी-छोटी दुकान वाले अक्सर झूठ कहा करते हैं। इन लोगों का यह ख्याल है कि बिना झूठ के व्यापार चल ही नहीं सकता। एक पैसे का सौदा खरीदने में घन्टे भर तक मगज मारना पड़ता है। मुफ्त में तकरार बढ़ती और समय नष्ट होता है। यदि सच्चाई के साथ व्यवहार किया जाय, तो क्यों न व्यापार में तरक्की हो?

हिन्दुस्तान में व्यापार की तरक्की क्यों नहीं होती? इसका एक कारण है कि हिन्दुस्तानी लोग, जो लिख पढ़ सकते हैं वह केवल नौकरी किया करते हैं व्यापार करना वह अपनी बेइज्जती समझते हैं, या उधर ध्यान नहीं देते। चाहे दुकानदारों की वह नौकरी करें पर दुकानदारी कभी नहीं करेंगे। यह भी क्या मजे की बात है, कि-जिस पेशे को स्वयं नहीं करना चाहते, उस पेशे वाले की नौकरी तो वह कर लेंगे, पर वह इज्जत का पेशा न करेंगे। हिन्दुस्तानियों को सत्य व्यापार की ओर ध्यान देने की अत्यन्त आवश्यकता है। व्यापार नीति का रहस्य जानने के लिये सिर तोड़ परिश्रम तथा अनुभव करने की निहायत जरूरत है, कि किस प्रकार कौन से व्यापार से किस देश में कितना लाभ होगा, हमको ग्राहकों के साथ किस प्रकार बर्ताव करना चाहिये। इस बात की ओर पूरा पूरा ध्यान देना चाहिये, इस बात पर दृढ़ विश्वास करना चाहिये, कि-सच्चाई के साथ व्यापार करने से जो लाभ होता है, वह कदापि झूठ से नहीं। झूठ से एक दफे रकम आनी संभव है, पर पश्चात वह चलता नहीं। काठ की हाँडी दूसरी दफे आग पर नहीं रखी जाती, एक दफे चाहे उस में बना भी लो। बरसाती नदी जैसे किनारों को तोड़ फोड़ कीचड़ तथा लकड़ी बहा कर सनसनाती हुई धूम-धाम के साथ थोड़े दिनों तक अपना प्रवाह रखती है, और फिर उसमें पानी पीने को भी नहीं रहता, इसी प्रकार झूठा व्यवहार थोड़े दिनों तक दुनिया को ठगकर लोगों की नजर में अपना वैभव दिखाता है, पश्चात वह स्वयं नष्ट हो जाता है। और साथ ही इज्जत और आबरू को भी अपने में लय-कर देता है। पर सत्य व्यापार करने से धन की प्राप्ति होती है, प्रतिष्ठा बढ़ती है, धर्म होता है, और मुक्ति मिलती है। यह लोक और परलोक दोनों बनते हैं।

काशी के महात्मा तुलाधार वैश्य का इतिहास किस को मालूम नहीं? सत्य व्यापार करते करते यह इस दर्जे के धर्मात्मा और ज्ञानी हो गये थे, कि बड़े बड़े तपस्वियों को कितने ही वर्ष तपस्या करने पर भी वह ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ था। एक तपस्वी एक दफे महात्मा तुलाधार की धर्म व ज्ञान की कीर्ति सुनकर उनके सत्संग की इच्छा से उनके पास आया। ज्यों ही उस महात्मा को तुलाधार से मिलना हुआ कि मुझे जो ज्ञान कितने ही वर्ष तपस्या करने पर भी प्राप्त नहीं हुआ, इस नीच वृत्ति से इसे कैसे प्राप्त हुआ? दर्याफ्त करने पर महात्मा तुलाधार ने कहा “आपको आश्चर्य होगा, कि-इस पेशे के करने वाले को ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ? पर इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। “मैं हमेशा सत्य का व्यवहार करता हूँ अपने ग्राहकों को ठगने की इच्छा नहीं करता मामूली नफा लेकर अपने ग्राहकों को सौदा देता हूँ मैं कभी कम या ज्यादा किसी को नहीं देता और न किसी से लेता हूँ, सब के साथ सच्चा व्यवहार करता हूँ। सत्य ही सब धर्मों में श्रेष्ठ है, और उसी का मैं सेवन करता हूँ। छल कपट कभी नहीं करता। यही कारण है कि मुझ को यह ज्ञान प्राप्त हुआ है जिससे आप जैसे महात्माओं को मुझे घर बैठे दर्शन मिलता रहता है।” आह।़ सत्य का कैसा माहात्म्य है। यदि हिन्दुस्तानी वैश्य लोग तुलाधार के इस पवित्र उपाख्यान की ओर दृष्टि दें, यदि वह तुलाधार की तरह सत्य व्यवहार करें, सत्य बोलें, तो उनको तपस्या के लिये जंगल में जाने का क्या प्रयोजन है? सत्संग के लिये महात्माओं के ढूंढ़ने का क्या मतलब है दुकान पर बैठे हुए धन, धर्म, काम, मोक्ष, सत्संग वगैरह सब अपने आप चले आते हैं, क्योंकि अक्सर यह देखा गया है, कि-जो भले आदमी होते है वह बहुधा उसी दुकान से लेन देन रखते हैं। भले आदमियों के ही समागम को सत्संग कहते हैं, सत्संग ही से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष व प्राप्ति होती है। तो प्यारो। तुम सत्य व्यवहार प्रेम का बर्ताव क्यों न करो। यह देखिये, आजकल गैर मुल्क वाले तुलाधार की तरह सत्य व्यवहार से कैसे मालामाल हो रहे है, उनका कैसा ऐश्वर्य बढ़ रहा है। इसी व्यापार की बदौलत सारी दुनिया उनकी हस्तगत हुई चली जा रही है। तुम लोग भी व्यापार करो व्यापार की वृद्धि करो। क्षुद्र व्यापार के लोभ में पूँजी लगाकर आलसी मत बनो। गैर मुल्क वाले व्यापार में इतने रुपये लगा रहे हैं कि बुद्धि काम नहीं करती। उतना रुपया तुम्हारे पास है ही नहीं। मतलब यह है कि जितना भी रुपया तुम्हारे पास है, वह सब व्यापार के लिए बहुत कम है। ब्याज में न लगा कर उन रुपये को व्यापार में लगाने से तुमको आशातीत लाभ होगा, तुम्हारे मुल्क को फायदा पहुँचेगा।

परन्तु यह बड़े अफसोस की बात है कि हिन्दुस्तानी लिखे पढ़े आदमी व्यापार करना नहीं चाहते पर इससे भी ज्यादा शोक इस बात पर है कि हिन्दुस्तानी व्यापारी लोग विद्या की ओर ध्यान नहीं देते। विद्या को वह कोई चीज नहीं समझते। उनका ख्याल है कि-हम को किसी की नौकरी थोड़ी करनी है जो पढ़ने में इतना सिर मारें यह उन लोगों का बड़ा ही बेहूदा ख्याल है। अनपढ़ा आदमी जितना रुपया लगाकर जितना नफा कर सकेगा, लिखा पढ़ा आदमी उतने ही रुपयों से बीस गुना नफा कर सकता है।

व्यापार के लिए धन की जैसी जरूरत है, विद्या की भी वैसी ही जरूरत है कठिन समस्या है कि-विशेष लिखे पढ़े आदमी तो व्यापार नहीं करते और व्यापारी लिखना पढ़ना नहीं चाहते। व्यापार के लिए नित्य नई नई तदवीरें सोचनी पड़ती हैं, और नई नई तदवीरें को सोचने के लिए विद्या चाहिए। विद्या न होने के कारण हिन्दुस्तान का व्यापार तरक्की में नहीं है गैर मुल्क वाले नित्य नई नई तदवीरें सोच कर नया कौशल रचकर व्यापार में आशातीत उन्नति करते हैं। हिन्दुस्तान को भी उनसे शिक्षा लेकर अपनी उन्नति करनी चाहिए।


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