भूतल पर उतरा आसमान

October 1950

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(ले.-श्रीमति विद्यावती मिश्र)

खुल पड़ा प्रलय का पंथ और भूतल पर उतरा आसमान।

मैं मंत्र मुग्ध देखती रही, यह कैसा परिवर्तन महान॥

सोये जड़ चेतन जाग उठे, जग में नवीन जीवन छाया।

मंगल ध्वनि चहुँ दिश गूँज पड़ी, नव युग आया! नव युग आया॥

तममयी निशा का हुआ अन्त ले ज्योति पुँज आया विमान।

खुल पड़ा प्रलय का पंथ और भूतल पर उतरा आसमान॥

इस जीर्ण-शीर्ण खँडहर जग की, छाती पर नूतन लोक बसा।

वह महाकाल का इष्ट बना, निर्माण काल क्षण में सहसा॥

विश्वास नये, संबल नवीन, संदेश नया, फिर नया ज्ञान।

खुल पड़ा प्रलय का पंथ और भूतल पर उतरा आसमान॥

मानव की नूतन काया ने लो रंग मंच पर चरण धरा।

पुलकित लख कर के सूत्रधार, उल्लास ह्सडडडडड जग में बिखरा॥

कह रहा नियति से जरा सँभल, मैं आता हूँ, हो सावधान!

खुल पड़ा प्रलय का पंथ और भूतल पर उतरा आसमान॥

अब यह मानवता मेरी है, वह मेरी पूजा का प्रसाद।

जिसको फिर मैंने पाया है कितने युग कितने जन्म बाद॥

यह मेरी है, यह मेरी है, कोई न कहेगा इसे दान।

खुल पड़ा प्रलय का पंथ और भूतल पर उतरा आसमान॥


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