आइये आपका मनोविश्लेषण करें

July 1946

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(डा. रामचरण महेन्द्र एम. ए. डी. लिट्)

आपकी सामान्य बुद्धि —

यदि आप में जल्दी-जल्दी पढ़ जाने की आदत है, तो इसका यह अर्थ है कि मन में एकाग्रता एवं ग्रहण शक्ति का अभाव है। आप किसी तत्व का ऊपरी ज्ञान ही लेना चाहते हैं, उसके अन्त तक बैठ कर समूचा तत्व नहीं ग्रहण करना चाहते। अध्ययन में अधिक समय दीजिए और तभी आगे पढ़िये, जब आप यह समझते हों कि आपने प्रारम्भिक अंश अच्छी तरह समझ लिया है और आप निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं।

यदि आपको पढ़ने लिखने या समझने में कठिनाई प्रतीत होती है तो शायद आपकी भावना (Feelings) उत्तेजित है। विचार, भावना, संकल्प इन तीनों में आपकी भावना उत्तेजित हो सकती है और वही विचार धारा में व्यवधान उपस्थित कर सकती है। भावना में बह जाइए, कल्पना के साथ मत उड़िये। वरन् मस्तिष्क को कठोर चिंतन में लगाकर भावना को वश में कीजिए और विचार को विकसित होने का अवसर दीजिए। सर्वांगीण विकास ही सर्वोत्तम है।

यदि आपको अपने पढ़ने लिखने, ज्ञानार्जन करने, परीक्षा पास करने में सामान्य (Averge) रूप से अध्ययन करना पड़ा, न आपने अधिक परिश्रम किया, न समय बरबाद किया, तो इसका अर्थ है कि आपका प्रारम्भिक मानसिक विकास ठीक रहा है। किन्तु फिर अपने से पूछिए कि परीक्षा पास करने के पश्चात् भी उसी रफ्तार से बुद्धि का विकास चल रहा है या नहीं? यदि अब भी आप निश्चित समय अपने दैनिक व्यापार कारोबार के अतिरिक्त अध्ययन, चिंतन तथा मनन में लगाते हैं, तब आपका बौद्धिक विकास ठीक चल रहा है। आगे आशा है।

यदि स्कूल के दिनों में मानसिक प्रतियोगिताओं तथा कक्षा के पाठों में आपको सम्मान मिलता रहा है, तो संभव आपने अपने व्यक्तित्व के अन्य अंशों की तरफ समुचित ध्यान नहीं दिया है। क्या शारीरिक तथा आत्मिक विकास, सामाजिक व्यवहार इत्यादि भी उसी अनुपात से हुआ है? यदि नहीं, तो आपका व्यक्तित्व एकाँगी है। उसके बहुत से अंश अविकसित रह गए हैं। इसके विपरीत यदि आप स्कूल में फिसड्डी रहे, तो उसका मतलब है कि आपने अपना मन बहुत से अन्य कार्यों में लगाये रक्खा है। सोचिये कि वे कौन से कार्य थे? किसकी दुसंगति से लगे? अब उनसे छुटकारा मिला या अब भी वे आपकी शक्तियों को चूसते जा रहे हैं? शायद आप स्कूल के दिनों में हीनत्व की भावना में ग्रसित रहे? बड़े विद्यार्थी आपको सताते रहे? या निंद्य कार्यों में संलग्न रहे? आपने मजेदारी के कार्य अधिक किये और लाभ के कम? अब समय है कि आप अपने मानसिक विकास की कमी को पूरा कर डालें और व्यक्तित्व के समस्त पहलू विकसित कर चरित्र को सर्वांगपूर्ण (Well-rounded character) बनायें।

यदि आप स्कूल के दिनों में अध्ययन के अतिरिक्त कार्यों में भी लगे रहे और उत्तरदायित्व को अच्छी तरह संभाले रहे, तब आपका विकास ठीक रहा। आप सामान्य से कुछ ऊँचे रहे और भविष्य में आप सर्वांग पूर्ण व्यक्तित्व बना सकेंगे।

यदि स्कूल के दिनों में लेखनी हाथ में लेकर जहाँ देखा कुछ न कुछ लिख दिया, दस्तखत कर दिये या व्यर्थ कागज खराब करते रहने की आदत आप में थी, अपनी खुद की पुस्तक में या दूसरे की पुस्तक में जो मन में आवे, वही आप लिख डालते थे, तो उसका अर्थ यह था कि आपमें आत्मसंयम की बहुत कमी थी। दिखावे की, शान दिखाने तथा अहं के विस्तार की भावना तीव्र थी। आप दूसरे पर अपनी विद्वता दिखाना चाहते थे, जबकि वास्तव में वह आत्म प्रवंचना के अतिरिक्त कुछ न था।

यदि बचपन में आप पुस्तकों को फाड़ते रहे हैं, उन्हें पाँव से छू देने पर दुःखी नहीं हुए हैं, उनके पृष्ठों को मोड़ते, फाड़ते, मोसते, गन्दा करते रहे हैं, जहाँ देखा पुस्तक पड़ी रही, गन्दी होती रही—तो इसका अर्थ है कि विद्या के प्रति आपका विशेष अनुराग प्रवृत्ति न थी। यही कारण है कि आपने कुछ न सीखा, न पढ़ा लिखा। आपकी बुद्धि अन्य कार्यों में लगी रही, ऊँचे विषयों की ओर उसकी प्रवृत्ति न रही।

यदि आप कक्षा के साथ चलते रहे, रोज का कार्य रोज निपटाते रहे, तो आपने वही किया जिसकी आपसे आशा की जाती थी। आपमें प्रारम्भ से ही उत्तरदायित्व की भावना दृढ़ रही और कार्य भार सम्भालने की योग्यता आप में तभी से थी।

यदि आपके अध्यापक आपको अच्छा, सुशील और आज्ञाकारी शिष्य बताते रहे, तो शायद आप बहुत मृदु, नर्म, स्वभाव के रहे, उनसे अत्यधिक दबते रहे। आपके गुप्त मन में थोड़ा भय, थोड़ी लज्जा, हीनत्व की भावना रही। आपने अपने व्यक्तित्व को साहस से विकसित न किया। यदि आपके अध्यापकों ने आपके विषय में कुछ भी न कहा, तो आपकी प्रगति ठीक (सामान्य) रही। आप ठीक रफ्तार से चले और भविष्य में भी आपसे वैसी ही आशा की जा सकती है।

यदि आप अन्य विषयों को छोड़कर एक या कुछ विशेष विषयों में दिलचस्पी लेते रहे, तो आपके व्यक्तित्व के कई पहलू अविकसित छूट गये, अन्य आवश्यक बातों का ज्ञान आपको न हुआ और थोड़े से परिश्रम से डरकर आप संकुचित रह गए। यह तंगदिली बुरी है। जीवन तो कड़ुवे मीठे अनुभवों की चटनी है। मजेदार और बेमजे—दोनों ही प्रकार के तत्वों का योग है। सम्पूर्ण व्यक्तित्व में सभी तत्वों का अनुपात से विकास होना चाहिए। चाहे आप पसन्द करें या न करें—सभी तत्वों का, अपने सभी पुरुषोचित गुणों का विकास होना चाहिए।

यदि आप प्रत्येक कार्य का ध्यानपूर्वक सतर्कता से निरीक्षण करते हैं, तब आप अपने कार्यों पर अवलम्बित रह सकते हैं। आप भूल चूक न करेंगे, यदि हड़बड़ाकर करने के आदी हैं तो मन में शान्ति का अभाव है। वह अनेक चीजों, कार्यों, प्रवृत्तियों में बँटा हुआ है। इस प्रवृत्ति से भविष्य में आप हानि उठा सकते हैं। बातें करने से पूर्व उसे खूब सोच लिया कीजिए। इसी प्रकार जो कुछ हाथ में ले उसी में सुई की तरह गढ़ जाया कीजिये।

यदि आप अपने व्यापार, उद्देश्यों, मनोरथों में सफल होते रहे हैं तो आप तीव्र बुद्धि सम्पन्न हैं और भविष्य में इसी के सहारे चल सकते हैं। मन से अपनी शक्तियों के प्रति सभी संशय दूर कर दीजिए यदि आप इनमें असफल होते रहे तो असफलता के दो मुख्य कारण हैं—या तो यह कार्य आपकी शक्तियों के अनुकूल नहीं है अन्यथा आप में विश्वास की कमी है। आप उस कार्य को मन से नहीं चाहते।

यदि समाज में लोग आपसे सलाह लेते हैं, तो अपने विषय में तुच्छता रखने का कोई अधिकार आपको नहीं है। आप आत्मश्रद्धा विकसित करें और खुद अपनी दृष्टि में भी प्रतिभा सम्पन्न बनें। यदि लोग आपसे सलाह नहीं लेते, आपको यों ही समझते हैं, तब जरुर आपके व्यक्तित्व में कमजोरी है। अपनी इस कमजोरी को मालूम कीजिये। क्या आपमें शिक्षा की कमी है? चरित्र की दृढ़ता नहीं है? या अनुभव शून्यता है? प्रतिभा अपने मौलिक विचारों का स्पष्ट प्रदर्शन है।

क्या तुम निशाना चुक गऐ हो? चूक गऐ तो किस कारण? संभव है अब तुमने विद्या, बुद्धि, अनुभव, अध्ययन एकत्रित कर लिया हो। अब निशाना चमकता दीख रहा है, पुनः एक प्रयत्न करो। क्या तुम दौड़ते-दौड़ते गिर गये हो? थोड़ा श्वास लो और फिर दौड़ो।

किसी कार्य को तय करने में यदि तुम्हें बहुत देर लगती है। करूं या न करूं? ऐसा सोचते हो, तो इसका अभिप्राय है कि तुममें संशय तथा अविश्वास है। तुम उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहते।

यदि तुम एक दम किसी की बावत राय पक्की कर लेते हो, तो यह बुद्धि का विक्षेप है। भली भाँति सोचकर ही राय पक्की करनी चाहिए।

यदि तुमने पहले ही सोच लिया है कि कल, भविष्य, जन्म में तुम्हें स्पष्टतः क्या करना है, तो तुम दूरदर्शी हो। किन्तु यदि उस योजना पर तुम ठीक से नहीं चल रहे हो, तो तुम संकल्प के ढीले हो। ढीले संकल्प वाले को कुछ नहीं मिलता। एक बार निश्चय करो और समय शक्तियों को उधर ही केन्द्रीभूत कर दो।

यदि तुम्हारा मन विद्या प्राप्त करने, नई-नई बातें सोचने, सुनने, समझने की इच्छा करता है तो सामान्यतः तुम्हारी बुद्धि की गति ऊँची तरफ है। उसका विकास हो रहा है। यदि तुम यही बात नहीं सीखना चाहते और रूढ़ियों में जकड़े हो, तो बुद्धि को जंग लग गया है।

—क्रमशः


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