—आपकी बाह्य परिस्थिति कितनी ही सामान्य क्यों न हो, यदि आपका अन्तःकरण असामान्य है तो निश्चय जानिये कि आप अपनी बाह्य स्थिति को भी असामान्य बना सकेंगे।
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—आप यह कभी न सोचिये कि एक मैं ही पूर्ण हूँ, मुझ में ही सब योग्यताएं हैं, मैं ही सब कुछ हूँ, सबसे श्रेष्ठ हूँ, वरन् आप यह सोचिये कि मुझ में भी कुछ है, मैं भी मनुष्य हूँ, मेरे अन्दर जो कुछ है उसे मैं बढ़ा सकता हूँ, उन्नत और विकसित कर सकता हूँ।