वेद की अपेक्षा सत्य, सत्य की अपेक्षा इन्द्रिय निग्रह, इन्द्रिय निग्रह की अपेक्षा दान, दान की अपेक्षा तपस्या, तपस्या की अपेक्षा वैराग्य, वैराग्य की अपेक्षा आत्मज्ञान, आत्मज्ञान की अपेक्षा समाधि और समाधि की अपेक्षा ब्रह्म प्राप्ति उत्कृष्ट है।
ज्ञान ही परमब्रह्म है एवं साधना सर्वोत्तम मार्ग। जो व्यक्ति निगूढ़ भाव से ज्ञान तत्व को जानने में समर्थ होता है, उसकी समस्त कामनाएँ परिपूर्ण हो जाती हैं।
काल समस्त प्राणियों को विनष्ट कर देता है किन्तु जिसके प्रभाव से वह काल भी विनष्ट हो जाता है, उसको कोई भी नहीं जान सकता। वह परम स्वरूप परमात्मा ऊपर, बीच में, नीचे व निर्जन स्थानों में नहीं दिखाई पड़ता है, क्योंकि वह सारे लोक उसी के अन्तस्थ हैं, उसका बर्हिभाग कुछ नहीं है।
जिस पुण्यात्मा पुरुष ने कभी कोई पाप नहीं किया, उसकी अपेक्षा घोर पापी के पश्चाताप की महिमा कहीं अधिक है, क्योंकि जिन्होंने पापमय जीवन की कटुता का कभी अनुभव नहीं किया; उनके लिये दूर रहना कुछ कठिन कार्य नहीं है।
प्रार्थना का द्वार किसी समय खुला रहता है और किसी समय बन्द, पर पश्चाताप का द्वार तो सदा अनावृत रहता है।
आज ही तुम अपने पापों का प्रायश्चित कर लो, क्योंकि कल तुम्हारी मृत्यु भी हो सकती है।
सद्गुणों में सब से अधिक आवश्यक वह गुण है, जो अहंकार को दूर करता है, और वह सद्गुण है—विनम्रता।