भोपाओं का भ्रम जाल

July 1946

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री राजमल ललवानी’ श्वफ्. रु.रु.्न. च्ष्टद्गठ्ठह्लह्ड्डद्यज् )

यह जानते हुए भी कि मुझे देवी देवताओं तथा फकीर बली व भोपादि मन्त्र तन्त्र जानने वालों पर बिल्कुल श्रद्धा नहीं है फिर भी मेरे एक हितैषी सज्जन बड़े दृढ़ विश्वास के साथ एक भोपा को साथ लेकर एक सप्ताह हुए आये। भोपा को सम्बोधन करके वे महाशय बोले “यह एक सिद्ध हस्त महापुरुष हैं तथा इनको मालूम हुआ कि आपके मकान की नींव में एक देवी की मूर्ति गढ़ी हुई है जो पुत्रोत्पत्ति में बाधा डालती है। आप आज्ञा दें तो यह महाराज आपके सामने जमीन में से वह मूर्ति निकाल देंगे, इसके अलावा इनके पास कई विस्मयकारी चमत्कार हैं और वे सब इनको भी श्री बजरंगबली की कृपा से उपलब्ध हुए हैं।” उनके प्रशंसा के उद्गारों का साराँश यह था कि उनके नजरों में वह भोपा परमात्मा के एक छोटे भाई से कम न जँचता था मुझे उनकी इस भोली समझ पर बड़ी हँसी आ रही थी कि ऐसे वैज्ञानिक युग में भी हमारी समाज में कितनी अंध श्रद्धा है। इतना ही नहीं हमारे पूज्य मुनि महाराज संत महात्मा जब कि हमेशा सम्यकत्व का उपदेश देते हैं। फिर भी यह विपरीत श्रद्धा हमारी समाज में इतनी गहरी क्यों विद्यमान है? बड़ा विचार पैदा हुआ।

आखिर मैंने लोगों की इस भोली मान्यता को मिटाने के उद्देश्य से मेरे गाँव के कुछ सज्जनों को जिनको देवी देवताओं पर व भोपादि पर विश्वास था बुलाया व सबके सामने भोपाजी को अपना चमत्कार बताने के लिये कहा। भोपाजी ने धूप किया व अपने पास के कंगन पर हाथ रखा हाथ रखते ही बड़ी आवाज के साथ आँखों को अनिमेष करके अंग को जोर शोर से घुमाना शुरू किया। लोगों ने समझा बजरंग बली आ गये 2-3 दफे विश्रान्ति ले लेकर विकराल रूप करके एक दम उठे और एक कोने में लात मार कर एक मूर्ति गिराकर बोले-देखिये यह मूर्ति आ गई। मैंने कहा “महाराज जमीन में से अगर मूर्ति आई होती तो जमीन में कहीं खड्डा नजर आता और न इस मूर्ति पर कोई मिट्टी की रंगत ही नजर आती है और फिर हम कैसे मान लें कि यह मूर्ति आपने जमीन में से निकाली है। उत्तर में बड़े जोर से गुर्राने लगे। इस गुर्राने में भी उनकी चालाकी थी सामने वाला व्यक्ति इस आवाज से घबरा जाय व उसके दिल में देवी दोष करने का भय होने लगे ताकि वह आगे पूछ न सके। परन्तु उनकी यह युक्ति मेरे पर कोई असर कर न सकी। आखिर बोले माँग क्या माँगता है? मेरे हितैषी सज्जन ने मुझे माँगने के लिए कहा मैंने महाराज से कहा महाराज मैं मुद्दत की कोई वस्तु नहीं माँगता। मैं प्रत्यक्ष वस्तु चाहता हूँ जिसमें भी मेरा किसी प्रकार का स्वार्थ व लोभ न होगा। हम लोगों ने आज तक पारस का नाम सुना है परन्तु अभी तक देखा नहीं अतः आप अपने देवता से कहिये कि वे पारस लाकर उससे लोहे को सोना करके हमें सिर्फ बता दें। हमको पारस की, सोने की, जरूरत नहीं है केवल हम देखना चाहते हैं। अगर हमें पारस बता दिया तो हम समझेंगे कि आपके अंग में जरूर देव आते हैं।” भोपाजी ने कहा कि हम कल आपको पारस लाकर बतायेंगे दूसरे दिन फिर एक दफे ही नहीं दो दफे प्रयोग किया। जोर-जोर से घूमकर देव को बुलाये। खूब हाथ पैर पटके परन्तु कोई निष्कर्ष नहीं निकला। आखिर हताश होकर बोले कि आप कोई दूसरी वस्तु माँगिये। मैंने दस लाख सो नये बरसाने का व दस लाख जवाहरात बरसाकर केवल बताने को कहा परन्तु सब ओर से निराशा हाथ लगी आखिर उन्होंने देख लिया कि इन तिलों में कोई तेल नहीं है। तीसरे दिन मुझसे बिना मिले ही चलते बने। मेरे हितैषी सज्जन के चेहरे पर तो हवाइयां उड़ रहीं थीं।

मेरा इस घटना का उल्लेख करने का उद्देश्य यह है कि पाठकगण ऐसे भोपे डोपे तन्त्र मन्त्र वालों पर विश्वास कर बरबाद न होवे। मैंने मालूमात की दृष्टि से ऐसे लोगों से कई प्रयोग कराये हैं परन्तु मुझे किसी में भी तथ्य जान नहीं पड़ा। भोले लोगों को सिर्फ यह ठगने का जाल है इसके सिवाय कुछ नहीं। इनसे डरने की व देवी दोष का भय करने की कतई जरूरत नहीं है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: