ज्योति वर्धक, नेत्र-व्यायाम

July 1946

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नेत्रों की ज्योति बढ़ाने के लिए एक उपयोगी व्यायाम नीचे दिया जाता है। इसे प्रतिदिन प्रातः काल सूर्योदय के समय करना चाहिये। इस अभ्यास को करने में दस मिनट के लगभग लगते हैं। इसके कुछ दिन लगातार करने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है और चश्मा लगाने की आदत छूट जाती है। व्यायाम इस प्रकार है-

कमर को सीधी करके पालथी मारकर शान्तिपूर्वक बैठिये। सिर सीधा रखिये, नेत्र बन्द कर लीजिए।

पुतलियों को नेत्र बन्द किये ही दाहिनी ओर मोड़िये फिर बाई ओर मोड़िए। ऐसा पाँच बार करिए। इस क्रिया को करते समय सिर न हिलना चाहिए।

पुतलियों को ऊपर ले जाइए फिर नीचे लाइए। सिर को बिना इधर-उधर हिलाए, इस क्रिया को भी पाँच बार कीजिए।

पुतलियों को ऊपर उठाओ फिर दाहिनी ओर, नीचे बाई ओर, ऊपर, इस क्रम से पाँच चक्कर घुमाइए।

पुतलियों को नीचे ले जाकर बायीं ओर, ऊपर, दायीं ओर, नीचे इस क्रम से पाँच चक्कर घुमाइए।

नाक के अग्रभाग के पहले दाहिनी आँख से फिर बाई आँख से देखो। नेत्र दोनों खुले रहें। नाक का अग्रभाग पुतली को थोड़ा सा मोड़ने से दिखाई देता है। इस क्रिया को भी पाँच बार करो।

पलकों को सिकोड़ कर आँखों को बंद कीजिए फिर एक दम खोल दीजिये इस क्रिया को भी पाँच बार कीजिये।

यह सब क्रियाएं करने के बाद नेत्रों को बन्द कर उंगलियों से धीरे-धीरे एक मिनट सहलाना चाहिये।

इसके बाद ताजे स्वच्छ शीतल जल से पलकों पर छींटे मारने चाहिये।

यह अभ्यास प्रातःकाल सूर्योदय के समय खुली जगह में पूर्व की ओर मुँह करके ऐसी जगह करना चाहिये जहाँ से सूर्य दीखता हो।

आरम्भ में हर क्रिया पाँच-पाँच बार करने का आदेश किया गया है। इसमें प्रति सप्ताह एक बार की वृद्धि करते जाना चाहिये और अन्त में हर क्रिया को दस बार करने का प्रयत्न करना चाहिये। दस बार से अधिक करने की जरूरत नहीं है।

आँखों की कमजोरी शिथिलता, धुन्ध, और मन्द ज्योति को हटाने में इससे सहायता मिलती है। जलन दूर होकर शीतलता प्राप्त होती है। व्यायाम से जैसे शरीर के अन्य अंग पुष्ट होते हैं वैसे ही नेत्रों को भी व्यायाम द्वारा पुष्ट एवं निरोग बनाया जा सकता है।


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