त्याग का अर्थ है—दूसरों की सेवा करना। उनसे प्रेम और सहानुभूति रखना और उन्हें अपनी शक्तियों द्वारा लाभ पहुँचाना। जो त्याग के द्वारा प्राप्त होने वाले आनन्द का रसास्वादन एक बार कर लेता है वह जानता है कि लेने की अपेक्षा देना अधिक आनन्दमय है।
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मनुष्य का सबसे बड़ा मुक्तिदाता स्वयं उसी के भीतर विद्यमान है-वह है-’सत्य’। सत्य ही ईश्वर है। जिसके विचार और कार्य भले हैं, वास्तव में वही सच्चा मनुष्य ईश्वर भक्त एवं जीवन मुक्त है।