यदि गेहूँ न मिले तो?

July 1946

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(डा. बिट्ठलदास मोदी, आरोग्य मन्दिर, गोरखपुर)

उस दिन जब राशन में चार छटाँक के बजाय दो छटाँक गेहूँ मिलने का आर्डर हुआ तो एक भाई आरोग्य मन्दिर में पधारे और कहने लगे कि आप तो बराबर ही शाक तरकारी अधिक खाने एवं अन्न कम खाने की सिफारिश करते हैं पर यह तो बताइये कि “यदि राशन और भी कम हो जाय एवं गेहूँ दो छटाँक भी न मिले तो?”

ठीक यही प्रश्न आज से दो महीने पहले मुझसे स्थानीय मारवाड़ी छात्र संघ के मन्त्री ने किया और बदले में अपने और अपने सदस्यों के लिए इस समस्या को सुलझाते भोजन की एक दावत मुझ से माँग ली थी। मैंने उन्हें बुलाया और उस समय आने वाली तरकारियों में से चुकन्दर, पात गोभी, टमाटर, गाजर एक, दो, तीन, चार के अनुपात में कच्ची ही पाव पाव भर की मात्रा में प्रत्येक के लिए एक कटोरे में सजा दी थी। ऊपर से दो-दो तोले किशमिश और नमक, जीरा और पाँच सात बूँद नीबू का रस भी डाला गया था, गन्ने के रस, मखनिया दूध और लौकी की खीर बनाई गई थी। कुछ गुड़ भी था और “गेहूँ न मिले तो?” का जवाब बालू में भुना आलू भी परोसा गया था। लोगों ने खाया और छात्र संघ के चालीस सदस्यों में से पाँच सात ही ऐसे निकले होंगे जिन्हें इस भोजन में मजा न आया हो। यहाँ पर यह बता देना अप्रासंगिक न होगा कि इस भोजन में प्रत्येक के पीछे पाँच आने ही खर्च हुये थे।

इधन की पूर्ति

जब लोग यह सोचने लगते हैं कि अगर गेहूँ न मिले तो? तो यह भूल जाते हैं कि शरीर के लिए गेहूँ, चावल, जौ, मकई, बाजरे, बजडी, टाँगुन, साँवा, केला और आलू का मूल्य एक ही है। ये सभी शरीर रूपी इंजन के लिए इंधन का काम करते हैं। इंधन किसी भी लकड़ी का क्यों न हो जल कर तो वह गरमी ही पहुँचाता है। अतः प्रश्न होना चाहिए कि इंधन की पूर्ति कैसे हो? न कि अमुक से ही इंधन की पूर्ति हो। यहाँ क्यों और कैसे—में न जाकर यह सीधे में बता देना उचित समझता हूँ कि उत्तमता के हिसाब से सर्वोत्तम श्वेता सार केले में फिर आलू में और तब चावल, गेहूँ, जो, मकई, बाजरे आदि में पाया जाता है। केले को लोग भोजन समझते ही नहीं, आलू को भी भाजी से अधिक महत्व नहीं दिया जाता। यही नहीं आलू के विषय में लोगों में अनेक गलत धारणायें भी बैठी हुई हैं। उन सबमें बड़ी तो यह है कि आलू गरम होता है। श्वेतसार का काम ही शरीर में गरमी पहुँचाना है और लोग जब इसे रोटी या चावल के साथ शाक समझ कर खा जाते हैं तो शरीर में आवश्यकता से अधिक श्वेत सार पहुँचने से अधिक गरमी उत्पन्न हो जाती है और दोष अपनी समझ को नहीं गरीब आलू को दिया जाता है। तो आलू को शाक की तरह, नहीं अन्न की तरह बरतिए, इसे पूरा भोजन समझिये।

आलू की उपयोगिता

भोजन विज्ञान के कई जानकार भी आलू में उत्तम प्रकार का श्वेता सार होने पर भी आलू, केले, चावल के मुकाबले में गेहूँ की ही अधिक सिफारिश करते हैं। इसका भी कारण है। भोजन के साथ फुजले का होना आवश्यक है और वह गेहूँ में चोकर के रूप में, केले में रेशों, आलू के छिलके या चावल की ऊपरी पर्त की अपेक्षा बहुत अधिक होता है। अतः गेहूँ खाने वालों के लिए कब्ज का डर नहीं रहता पर यदि आलू के साथ हरी तरकारियाँ अधिक खायी जायें तो वह डर जाता रहेगा, क्योंकि हरी तरकारियों में फुजले की प्रधानता होती है।

आलू खाना भी सीखिये। यदि डेढ़ सेर पानी में सेर भर आलू उबालकर आप उसका पानी फेंक देंगे तो आप उन पुराने जमाने के चाय इस्तेमाल करने वालों की तरह हास्यास्पद होंगे जो चाय की पत्तियाँ पानी में उबलकर पानी फेंक देते थे और बची पत्तियों को मक्खन और रोटी पर छिड़क कर खाते थे। आलू में जो प्राकृतिक लवण होते हैं वे अधिकतर इस पानी में चले जायेंगे और आप श्वेतसार ही खायेंगे। अतः पूर्ण लाभ के लिए आलू को भाप से पकाइये या आग में भुनवाइये। उबला ही पसंद हो तो तरकारियों या दाल में डाल दीजिये। इस तरह उबालने में जो सामान निकलेगा वह आपको दूसरे रूप में मिल जायगा। जिस तरह भी पकाइये पर जहाँ तक बन सके उसका छिलका न फेंकिये। कच्चे को छीलकर तो कभी बनाइये ही नहीं। ऐसा करके आप आलू का बहुत कुछ नष्ट कर देते हैं। एक आलू को बीच से तराशिये, आपको उसमें दो भाग स्पष्ट दिखाइए देंगे एक बीच का जरा पनीला बड़ा भाग और फिर उसके चारों और पतली पर कड़ी सी हद। इसी बाहरी हद में आलू के प्राकृतिक लवण होते हैं और छिलने में तो उनका ज्यादा हिस्सा निकलने से न रुकेगा।

आलू तथा आटे में श्वेतसार की मात्रा इस प्रकार होती है—

श्वेतसार पानी

उबला और छिला आलू 19780

छिलके समेत भुना आलू 2571

छने आटे की रोटी 5432

चोकर समेत आटे की रोटी4437

आलू में गेहूँ से ज्यादा लोहा, चूना, फास्फोरस और पोटाश तो होता ही है इसमें और भी कई मूल्यवान प्राकृतिक लवण पाये जाते हैं जो गेहूँ में नहीं मिलते। इन प्राकृतिक लवणों की रोगों से बचाये रखने की शक्ति आज किसी से छिपी नहीं है।

पर एक मनुष्य को जितनी रोटी की जरूरत होगी उससे दूने से भी थोड़े अधिक वजन के आलू की जरूरत होगी। इसका कारण यह है कि आलू में रोटी की बनिस्बत दूने से ज्यादा पानी होता है अतः इसी अनुपात में श्वेतसार कम होता है।

घबराइये नहीं

गेहूँ की कमी के कारण न घबराइये। रूस में बहुत से लोगों का भोजन राई है, अमेरिका में मकई, जर्मनी में आलू, टिसटम डी कुनहा द्वीप के लोग तो आलू के सिवाय दूसरी चीज जानते ही नहीं। विदेश को जाने दीजिए भारत में ही बंगाल, बिहार के अधिकतर लोग चावल खाते हैं। राजपूताने में बाजरा चलता है, सावाँ कोदों रागी खाने वालों की भी संख्या कम कहीं हैं, फिर यदि आलू खाने वालों की संख्या बढ़े तो हर्ज क्या है। आलू आप अपने बाग में बो सकते हैं और भोजन उपजाने के साथ-साथ श्रम का भी लाभ पा सकते हैं।


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