सुख दुःख के साथी

July 1946

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(लेखक-श्रीयुत महेश वर्मा)

सन् 1912 में टाईटेनिक नाम का एक बहुत बड़ा जहाज डूबा था। उसके साथ जो थोड़ी सी स्त्रियाँ डूबी थीं, उनमें से एक श्रीमती हसाडार स्टास भी थीं। उसके डूबने का कारण यह था कि वह अपने पति को नहीं छोड़ सकती थीं। प्रेम, तथा पारस्परिक सहानुभूति की यह कहानी इस प्रकार है-

उस दिन रात से ही जहाज में पानी आ रहा था। मल्लाह तथा कप्तान अस्त-व्यस्त हो इधर से उधर दौड़ रहे थे। जहाज के बचने की कोई आशा न थी। कम से कम स्त्रियों की जान बचा दी जाय—ऐसा सोचकर लाइफ बोटें उतारी जा रही थीं। मुसाफिर स्त्रियाँ घबराहट में लाइफ बोटों पर बैठ रहीं थीं। स्त्रियाँ काफी मात्रा में थीं अतः कुछ ही चुने हुए पुरुष लिए जा सकते थे। श्रीयुत स्टास इन चुने गये भाग्यशाली पुरुष मुसाफिरों में न आ सके। वे चुपचाप एक ओर शान्त मुद्रा से खड़े थे और यथा सम्भव भयभीत स्त्रियों तथा बच्चों को लाइफ बोटों में बैठने में सहायता दे रहे थे। वे बार-बार अपनी पत्नि को किसी लाइफ बोट में बैठकर प्राण रक्षा करने के लिए विवश कर रहे थे। वह बुढ़िया किसी प्रकार मानती न थी। श्रीयुत स्टास ने अन्त में अपनी प्यारी पत्नि की प्राण रक्षा के लिए उसे बलपूर्वक पकड़ कर नाव में धकेल दिया और नाव चल दी। उन्हें सन्तोष था कि अन्त समय में वे पति प्रेम की जिम्मेदारी का निर्भाव कर सके हैं। अपने बलिदान पर उन्हें सन्तोष था।

परन्तु ‘अरे! यह क्या? उनके मुख से निकल गया। उनकी बूढ़ी पत्नि गीले कपड़ों, हाँफती हुई जहाज के तख्ते पर चढ़ रही थी। उसमें न जाने कैसा बल आ गया था। इसके पूर्व कि उसका पति वहाँ तक पहुँच सके, वह डेक पर आ चढ़ी। वहाँ उसने अपने पति की बाँह पकड़कर अपनी बगल के साथ लपेट लीं और बोली-”हम वर्षों प्रेम और दुःख में इकट्ठे रहे हैं क्या अब मृत्यु समय में साथ न रहेंगे?”


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