चित्रगुप्त का परिचय

October 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(1)

नयन्ति नरकं नूनं मात्मानो मानवान् हताः।

दिव्यं लोकं च ते तुष्टा इत्यूचुर्मन्त्र वेदिनः॥

-पंचाध्यायी

(नूनं) निश्चय से (हताः) हनन की हुई (आत्मानः) आत्माएँ (मानवान्) मनुष्यों को (नरकं) नरक को (नयन्ति) ले जाती हैं (च) और (तुष्टा) संतुष्ट हुई (ते) वे आत्माएँ (दिव्यं लोकं) दिव्य लोक को ले जाती हैं (इति) ऐसा (मन्त्र वेदिनः) रहस्य को समझने वालों ने (प्रोचुः) कहा है।

उपरोक्त श्लोक में कहा गया है कि हनन की हुई आत्मा नरक को ले जाती है और संतुष्ट हुई आत्मा दिव्य लोक प्रदान करती है। श्लोक में इस गुत्थी को सुलझा दिया गया है कि स्वर्ग-नरक किस प्रकार मिलता है? गरुड़ पुराण में इस सम्बन्ध में एक आलंकारिक विवरण दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि यमलोक में चित्रगुप्त नामक देवता हर एक जीव के भले बुरे कर्मों का विवरण प्रत्येक समय लिखते रहते हैं। जब प्राणी मर कर यमलोक में जाता है, तो वह लेखा पेश किया जाता है और उसी के आधार पर शुभ कर्मों के लिए स्वर्ग और दुष्कर्मों के लिये नरक प्रदान किया जाता है। साधारण दृष्टि से चित्रगुप्त का आस्तित्व काल्पनिक प्रतीत होता है, क्योंकि पृथ्वी पर अरबों तो मनुष्य ही रहते हैं, फिर साथ ही तथाकथित चौरासी लाख योनियों में से अनेक तो मनुष्य जाति से अनेक गुनी बड़ी हैं, इन सब की संख्या गिनी जाय, तो इतनी अधिक हो जायगी कि हमारे अंकगणित की वहाँ तक पहुँच भी न होगी। फिर इतने असंख्य प्राणियों द्वारा पल पल पर किये जाने वाले कार्यों का लेखा दिन रात बिना विश्राम के कल्प-कल्पांतरों तक लिखते रहना एक देवता के लिए कठिन है। इस प्रकार चित्रगुप्त का कार्य असंभव प्रतीत होता है, इस कथानक को एक कल्पना मान लेने पर चित्रगुप्त का अस्तित्व भी संदिग्ध हो जाता है।

आधुनिक शोधों ने उपरोक्त अलंकारिक कथानक में से बड़ी ही महत्वपूर्ण सचाई को ढूँढ़ निकाला है, डॉक्टर फ्राइड ने मनुष्य की मानसिक रचना का वर्णन करते हुए बताया है कि जो भी भले या बुरे काम ज्ञानवान् प्राणियों द्वारा किये जाते हैं, उनका सूक्ष्म चित्रण अन्तः चेतना में होता रहता है, ग्रामोफोन के रिकार्डों में रेखा रूप से गाने भर दिये जाते हैं। संगीत शाला में नाच, गान हो रहा है और साथ ही अनेक बाजे बज रहे हैं, इन अनेक प्रकार की ध्वनियों का विद्युत शक्ति से एक प्रकार का संक्षिप्त एवं सूक्ष्म एकीकरण होता है और वह रिकार्ड में जरा सी जगह में रेखाओं की तरह अंकित होता जाता है। तैयार किया हुआ रिकार्ड रखा रहता है, वह तुरन्त ही अपने आप या चाहे जब नहीं बजने लगता वरन् तभी उन संग्रहीत ध्वनियों को प्रकट करता है, जब ग्रामोफोन की मशीन पर उसे घुमाया जाता है और सुई की रगड़ उन रेखाओं से होती है। ठीक इसी प्रकार भले और बुरे जो भी काम किये जाते हैं, उनकी सूक्ष्म रेखाएं अन्तः चेतना के ऊपर अंकित होती रहती हैं और मन के भीतरी कोने में धीरे-धीरे जमा होती जाती हैं। जब रिकार्ड पर सुई का आघात लगता है, तो उसमें भरे हुए गाने प्रकट होते हैं, इसी प्रकार गुप्त मन में जमा हुई रेखाएं किसी उपयुक्त अवसर का आघात लगने पर ही प्रकट होती हैं। भारतीय विद्वान् ‘कर्म रेख’ के बारे में बहुत प्राचीन काल से जानकारी रखते आ रहे हैं। “कर्म रेख नहीं मिटे, करो कोई लाखन चतुराई” आदि अनेक युक्तियाँ हिन्दी और संस्कृत साहित्य में मौजूद हैं, जिनसे प्रकट होता है कि कर्मों की कोई रेखाएं होती है, जो अपना फल दिये बिना मिटती नहीं। भाग्य के बारे में मोटे तौर से ऐसा समझा जाता है कि सिर की अगली-मस्तक वाली हड्डी पर कुछ रेखाएँ ब्रह्मा लिख देता है और “विधि का लिखा को भेटन हारा।” उन्हें मिटाने वाला कोई नहीं है। डॉक्टर यीवेन्स ने मस्तिष्क में भरे हुए ग्रे मैटर (भूरा चर्बी जैसा पदार्थ) का सूक्ष्मदर्शी यन्त्रों की सहायता से खोज करने पर वहाँ के एक-एक परमाणु में अगणित रेखाएँ पाई हैं, यह रेखाएँ किस प्रकार बनती हैं इसका कोई शारीरिक प्रत्यक्ष कारण उन्हें नहीं मिला, तब उन्होंने अनेक मस्तिष्कों के परमाणुओं का मुकाबला करके यह निष्कर्ष निकाला कि अक्रिय, आलसी एवं विचारशून्य प्राणियों में यह रेखाएँ बहुत ही कम बनती हैं, किन्तु कर्मनिष्ठ एवं विचारवानों में इनकी संख्या बहुत बड़ी होती है। अतएव यह रेखाएँ शारीरिक और मानसिक कार्यों को संक्षिप्त और सूक्ष्म रूप से लिपिबद्ध करने वाली प्रमाणित हुई।

भले बुरे कार्यों का ग्रे मैटर के परमाणुओं पर यह रेखांकन (जिसे प्रकट के शब्दों में अन्तः चेतना का संस्कार कहा जा सकता है) पौराणिक चित्रगुप्त की वास्तविकता को सिद्ध कर देता है। चित्रगुप्त शब्द के अर्थों से भी इसी प्रकार की ध्वनि निकलती है। गुप्त चित्रगुप्त मन, अन्तः चेतना, सूक्ष्म मन, पिछला दिमाग, भीतरी चित्त शब्दों के भावार्थ को ही चित्र गुप्त शब्द प्रकट करता हुआ दीखता है चित्त शब्द को जल्दी में लिखने से चित्र जैसा ही बन जाता है। संभव चित्र बिगड़ कर चित्र बन गया हो या प्राचीन काल में चित्र और चित्त एक ही अर्थ के बोधक रहे हों। कर्मों की रेखाएं एक प्रकार के गुप्त चित्र ही हैं, इसलिए उन छोटे अंकनों में गुप्त रूप से-सूक्ष्म रूप से- बड़े-बड़े घटना चित्र छिपे हुए होते हैं, इस क्रिया प्रणाली को चित्रगुप्त मान लेने से प्राचीन शोध का समन्वय हो जाता है।

यह चित्रगुप्त निस्संदेह हर प्राणी के हर एक कार्य को हर समय बिना विश्राम किये, अपने बही में लिखता रहता है। सब का अलग-अलग चित्र गुप्त है, जितने प्राणी हैं, उतने ही चित्रगुप्त हैं, इसलिये यह संदेह नहीं रह जाता कि इतना लेखन कार्य किस प्रकार पूरा हो पाता होगा। स्थूल शरीर के कार्यों की सुव्यवस्थित जानकारी सूक्ष्म चेतना में अंकित होती रहे, तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं। पौराणिक चित्रगुप्त एक है और यहाँ अनेक हुए’ यह शंका भी कुछ गहरी नहीं हैं, दिव्य शक्तियाँ व्यापक होती हैं, पाठक जानते हैं कि प्राण तत्व एक है, उसके अंश विभिन्न व्यक्तियों में दृष्टिगोचर होते हैं। आत्मा और परमात्मा में व्यष्टि और समष्टि का ही भेद है, बाकी दोनों पदार्थ एक ही हैं। घटाकाश-मठाकाश का ऐसा ही भेद है। इन्द्र, वरुण, अग्नि, शिव, यम आदि देवता बोधक सूक्ष्मतत्व व्यापक समझे जाते हैं। जैसे बगीचे की वायु, गंदे नाले की वायु, आदि स्थान भेद से अनेक नाम वाली होते हुए भी मूलतः विश्व व्यापक वायुतत्त्व एक ही है, वैसे ही अलग-अलग शरीरों में रह कर अलग-अलग काम करने वाला चित्रगुप्त देवता भी एक ही तत्व है।

यह हर व्यक्ति के कार्यों का लेखा किस आधार पर, कैसा, किस प्रकार, कितना, क्यों लिखता है यह अगले अंक में बताया जायगा, तदुपरांत तीसरे लेख में उस लेख के आधार पर स्वर्ग-नरक का विवरण और उनके प्राप्त होने की व्यवस्था पर प्रकाश डाला जायगा।

कहानी-


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118