संयुक्ताँक

October 1942

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पाठकों को विदित होगा कि अखबारी कागज पर इन दिनों सरकारी कठोर नियंत्रण है। जितना कागज खरीदने का लाइसेन्स हमें मिला हुआ है, व्यापारी उससे एक कागज भी अधिक नहीं देते। हर महीने कागज का खर्च का हिसाब हमें चीफ कन्ट्रोलर साहब के यहाँ शिमला भेजना पड़ता है। कागज का खर्च कम से कम किया जाय, ऐसी सरकारी इच्छा है, तदनुसार आवश्यकता से बहुत कम कागज इन दिनों दिया जा रहा है, ऐसी दशा में हमें भी कुछ कम पन्ने देने के लिए विवश होना पड़ा। कन्ट्रोल कानून के अनुसार पन्नों के हिसाब से अखबार का मूल्य रखने का हुक्म है। उस हुक्म को तोड़ने पर जेल जाना हो सकता है। कन्ट्रोल का आदेश है कि दो पैसा प्रति फार्म के हिसाब से अखबार का मूल्य रखा जाय। इस हिसाब से वर्तमान पृष्ठ संख्या के अनुसार अखण्ड ज्योति का मूल्य कम से कम एक रुपया बारह आना वार्षिक अवश्य रखना चाहिए। किन्तु हमारी ऐसी इच्छा नहीं है, इतने ही मूल्य में ड्योढ़े सवाये पृष्ठ देने की बात हम सदैव सोचा करते हैं। मूल्य बढ़ाना इस बुरे वक्त में उचित नहीं, न बढ़ाने पर सरकारी कानून टूटती है, इस द्विविधा में एक नया हल निकाल लिया गया है। हम अक्टूबर, नवम्बर का सम्मिलित अंक निकाल रहे हैं। अर्थात् 12 की बजाय 11 अंक ही इस वर्ष दे रहे हैं, एक अंक कम मिलेगा, इसके बदले में नये वर्ष के उपलक्ष में 1 रु. मूल्य की एक पुस्तक भेंट दे देंगे। इस तरह पाठकों को दो आने मूल्य के एक अंक के बदले में छः आने मूल्य की पुस्तक मिल जायगी। वे भी घाटे में न रहेंगे, हमारा मूल्य न बढ़ाने और पृष्ठ कम न करने की इच्छा भी पूरी हो जायगा। सरकारी आज्ञा भी भंग न होगी और बीस तारीख को जो अंक मिलना था, वह हर महीने की पहली तारीख को भी निकल जाया करेगा। बीस तारीख को बहुत लेट निकलता है, यह भी शिकायत किसी को न रहेगी। अंग्रेजी महीने के पहले हफ्ते में ही अंक सब के पास पहुँच जाया करेगा। इस तरह न तो साँप ही मरेगा और न लाठी ही टूटेगी ।

विशेष परिस्थितियों में विवश होकर ही हमें यह अंक अक्टूबर-नवम्बर का सम्मिलित अंक निकालना पड़ा है। आशा है कि पाठक इसके लिए उदारता पूर्वक क्षमा करेंगे और किसी प्रकार का दुर्भाव मन में लावेंगे।


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