स्वर्ग और नरक में वही भेद हैं कि स्वर्ग का व्यक्ति अपने पास की चीज को सर्वथा देने के लिए तैयार रहता है। और नरक वाला दूसरों की वस्तु को भी हजम करने की इच्छा रखता है।
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विद्या, धर्म की रक्षा के लिये होती है न कि धन एकत्र करने के लिये ही। जिसने विद्या के होते हुये केवल धन कमाया और अपनी नामवरी गँवा दी वह उस मनुष्य के समान है जिसने इकट्ठे किये हुए अन्न में आग लगा दी हो।
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ओछों की संगत नहीं करनी चाहिए। वह जलते हुए कोयलों के समान है। जलते समय गर्म होने की वजह से शरीर जलता है और जब वह ठंडा हो जाता है तो काला दिखाई देता है।
मानसिक विवेचन लेख माला-