समय का स्वरूप

October 1942

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एक सुसज्जित चित्रशाला में एक धनी व्यक्ति ने प्रवेश किया। उसे कुछ चित्र खरीदने थे। अपनी रुचि के अनुकूल चित्र तलाश करने के लिए वह चित्रशाला में टाँगे हुए एक-एक चित्र को ध्यानपूर्वक देखते हुए आगे बढ़ने लगा।

आगे जाकर उसने एक विचित्र प्रकार के मनुष्य का चित्र देखा, उसका चेहरा बालों से ढका हुआ था और पैरों, में बड़े-बड़े पंख लगे हुए थे।

धनी व्यक्ति ने आश्चर्य के साथ चित्रशाला के मालिक से पूछा- ‘यह अद्भुत प्रकार का चित्र किसका है?

चित्रकार ने कहा- यह तस्वीर ‘अवसर’ की है।

उसने पूछा- तो इसका चेहरा बालों से छिपा हुआ क्यों है?

चित्रकार ने उत्तर दिया- इसलिये कि जब यह लोगों के सामने आता है, तो वे इसे पहचान नहीं पाते।

दर्शक ने पूछा- अच्छा, और इसके पाँवों में पंख क्यों लगे हुए हैं?

चित्रकार ने उसे बताया इसलिए कि यह अधिक देर ठहरता नहीं और जल्दी ही चला जाता है। एक बार यदि यह उड़ जाय तो फिर देवता भी इसे नहीं पकड़ सकते।

अवसर सचमुच ऐसी ही वस्तु है। जीवन में अनेक अवसर हम अज्ञान और आलस्यवश उसकी उपेक्षा करते रहते हैं। समय को न तो हम पहचानते हैं और न उसे पकड़ते हैं, तदनुसार केवल असफलता ही हाथ रह जाती है।


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