चमत्कारी शक्तियाँ

October 1942

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जीवोऽनन्तबलोपेतः पितालौकिक शक्तिनाम्।

वर्तते तस्य सन्त्येताः दास्यश्च ऋद्धि सिद्धयः॥

-पंचाध्यायी।

(जीवः जीव) (अनन्तबलोपेतः) अनन्त बल से युक्त (अलौकिक शक्तियाँ) अलौकिक शक्तियों का (पिता) पिता (वर्तते) है (च) और (एताः) ये (ऋद्धि सिद्धयः) ऋद्धि सिद्धियाँ (तस्य) उसकी (दाम्यः) दासिनाँ (सन्ति) हैं।

शास्त्र का यह कथन बहुत ही अनुभवपूर्ण है कि “जीव अनन्त बल वाला और अलौकिक शक्तियों का पिता है। ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ उसकी दासी है।” सचमुच हमारी मानसिक रचना ऐसी अद्भुत है कि उसकी सम्भावनाओं के सम्बन्ध में बहुत ही कम जानकारी प्राप्त की जा सकी है जितनी जानकारी मिली है, वह ऐसी है कि अपने अलौकिक चमत्कारों से आश्चर्यचकित कर देती है।

अष्ट सिद्धियों नव निद्धियों की मान्यता योग शास्त्र के अंतर्गत है। पातंजलि ने योग के चमत्कारों पर प्रकाश डालते हुए साधन पाद के सूत्रों में बताया है कि अमुक अवस्था में पहुँचे मनुष्य से हिंसक पशु भी वैर त्याग देते हैं, उसके निकट गाय और सिंह एक घाट पानी पीते हैं, वह जो कुछ भी कह दे वही वाणी सत्य हो जाती है, सम्पूर्ण रत्न धन सम्पदा उसके सामने उपस्थित रहते हैं, मनमाना बल हो जाता है, अपने और दूसरों के जन्म जन्मान्तरों का वृत्त जान पड़ता है, उसके शरीर के काट डालने पर भी पीड़ा नहीं होती आत्म दर्शन करता है, वशीकरण में निपुण हो जाता है, इन्द्रियाँ दूरदर्शी हो जाती हैं, बहुत दूर के वृत्तान्त को कानों सुनाई पड़ते हैं, दूरस्थ वस्तुओं को आंखें देखती हैं, नाक सूँघती है, जिह्वा चखती है? शरीर भाप के समान हलका होकर के कहीं भी उड़ जा सकता है, पानी पर चल सकता है, वेश बदल सकता है, चाहे जितना छोटा या बड़ा बन सकता है, सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास का प्रभाव नहीं पड़ता प्राण रोक कर यथेच्छ काल तक जीवित रह सकता है, गड़ी हुई, छिपी हुई या अदृश्य वस्तु उसे दिखाई पड़ती हैं, भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञान होता है, जीव जन्तुओं की या अन्य भाषा-भाषियों की बोली समझ पड़ती है, दूसरे के मन की बातें मालूम हो जाती हैं, मृत्यु को जान लेता है, ग्रहों, नक्षत्रों, तथा ब्रह्माण्ड की गतिविधि के बारे में जानकारी हो जाती है, सिद्ध आत्माओं से साक्षात्कार करता है, पाँचों तत्व आज्ञाकारी बन जाते हैं, शाप और वरदान देने की शक्ति आ जाती है, जो चाहे सो घटना घटित कर सकता है। यह सब किस प्रकार होता है, इसका कुछ संकेत योग दर्शन के विभूति पाद में किया गया है।

संसार के समस्त देशों में ऐसी जन श्रुतियाँ और लिखित भाषाएं उपलब्ध होती हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में वहाँ कुछ व्यक्ति ऐसे रहे हैं, जो असाधारण शक्तियों से सम्पन्न थे, वे व्यक्ति ऐसे काम कर सकते थे, जो और लोगों के लिए बड़े आश्चर्य से भरे हुए, अनहोने एवं असाधारण हों। यह सब गाथाएं निरी कपोल कल्पनाएं नहीं हैं, हो सकता है कि कहीं-कहीं कुछ अतिरंजित वर्णन भी हो, पर इनका कुछ न कुछ आधार अवश्य है। शृंखलाबद्ध इतिहास का अध्ययन करने से ऐसी सच्चाइयां सामने आ जाती हैं, जिनमें अलौकिकताएं स्वीकार करनी ही पड़ती हैं। अब तक कुछ ऐसे ध्वंसावशेष प्राप्त होते हैं, जिनके गर्भ में दैवी चमत्कारों की गाथाएं दबी पड़ी हैं।

उन्नीसवीं सदी में हमारा यह नवविकसित बालक -भौतिक विज्ञान - यह साबित नहीं कर सका था कि कोई ऐसी अदृश्य शक्ति है, जिसके द्वारा मनुष्य की साधारण मर्यादा से बड़े काम हो सकते हैं। इसलिए चारों ओर यह घोषणा की जा रही थी कि, अलौकिक वाद निरर्थक है, मिथ्या है, पाखण्ड है। कुछ दम्भी व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए यह सब मन गढ़न्त कहानी रचते हैं। चूँकि भौतिक विज्ञान ने नित नये आविष्कारों के निर्माण का ताँता बाँध कर अपनी प्रामाणिकता को सिद्ध किया और आध्यात्मिक वाद का ह्रास हो जाने से चमत्कारी प्रमाण चाहे जहाँ उपलब्ध न हो सके। यह दोनों संयोग एक साथ ही आ मिले, इसलिए अदृश्य शक्तियों के खंडन में कोई विशेष बाधा न रही। भौतिक विज्ञान का साहस यहाँ तक बढ़ा कि उसने ईश्वर की बात तो दूर, आत्म-तत्व तक का आस्तित्व मानने से इनकार कर दिया। कहा जाने लगा- ‘बोलता पुरुष’ कुछ नहीं, पंचतत्वों से बने हुए शरीर में एक शक्ति वैसे ही उत्पन्न हो जाती है, जैसे ताँबे और जस्ते के तारों को एक विशेष विधान के साथ मिला देने के कारण अनेक कार्य करने वाली बिजली बन जाती है। उपरोक्त मत की पुष्टि करते हुए, कुछ मनुष्य की आकृति के यन्त्र भी बने हैं, जो बिजली की शक्ति से कुछ-2 मनुष्य जैसे कार्य भी कर लेते थे। ऐसे युग में स्वाभाविक ही था कि जन साधारण को विज्ञानवादियों का मत स्वीकार्य होता। एक स्वर से आलौकिकवाद को कल्पना की उड़ान या “पाखंड घोषित किया जाने लगा। किसकी हिम्मत थी जो ‘विजयी’ विज्ञान के विरुद्ध जबान खोलता। जो लोग अलौकिकता का अनुभव करते थे, वे भी बेचारे अपना मजाक उड़वाना नहीं चाहते थे, इसलिए उनने भी मौन रहना ही उचित समझा। विज्ञान युग ने चारों ओर विजय पताका फहरा दी कि हमने अन्धविश्वासों को उखाड़ कर फेंक दिया। अब कोई देवी, देवता, सिद्ध, योगी, भैरव, बैताल अपना आस्तित्व प्रकट करने का साहस न करेगा।

सचाई आखिर सचाई ही है। उसके अन्दर आत्म-जीवन की मात्रा इतनी होती है कि पत्थर को भी तोड़ कर बाहर निकल आती है। एक ओर यह सिद्ध किया जा रहा था कि संसार में दैवी शक्ति कुछ नहीं हैं दूसरी ओर आँखों के सामने ऐसी घटनायें घटित होती हुई, उपस्थित हो रही थीं, जिनका समाधान करने वाला कोई उत्तर देने में विज्ञान ने अपने को असमर्थ पाया। सर आलीवर लाज, सर कोनन डायल, कर्नल विकलेण्ड आदि प्रसिद्ध तथा प्रतिष्ठित महानुभावों ने अनेक और अत्यन्त आश्चर्यजनक जिनके घटनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव करने के उपरान्त तत्सम्बन्धी प्रचण्ड तार्किक विवेचना की और अन्त में इस निश्चय पर पहुँचे कि -’दृश्य जगत् के अतिरिक्त कुछ ऐसी अदृश्य सत्ताएं भी काम करती हैं, जो ज्ञानवान् हैं, विचार बुद्धि रखती हैं, और मनुष्य की अपेक्षा असंख्य गुनी शक्तिशालिनी हैं। यह सत्ताएं कभी-कभी किन्हीं विशेष मनुष्यों पर कारणवश आकर्षित होती हैं और उसे अद्भुत प्रसंगों का अनुभव कराती है।” थियोसोफिकल सोसायटी की जीवनदात्री श्रीमती एनी बेसेण्ट एक समय नास्तिकता के विचार रखती थी, किन्तु प्रत्यक्ष प्रमाणों ने इस बात के लिए विवश कर दिया कि वे अपने विचारों को बदल डाले। श्रीमती बेसेन्ट अदृश्य शक्तियों पर इतना अधिक विश्वास करता थीं कि यदि कोई भारतीय होता, तो उसे घोर अन्ध विश्वासी की उपाधि दे दी जाती। उनके तत्वावधान में एक अंग्रेजी पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका हिंदी अनुवाद दैवी सहायता’ के नाम से छपा है। इस पुस्तक में ऐसी ही कतिपय प्रत्यक्ष घटनाओं के संस्मरण हैं, जो अदृश्य देवताओं और गुप्त सिद्धियों की मान्यता को प्रमाणित करती हैं।

अगले अंक में क्रमशः हम पाठकों को यह बताने की कोशिश करेंगे अब आलौकिक वाद अन्धविश्वास नहीं रहा है वरन् वैज्ञानिक परीक्षणों से प्रयोग शालाओं में उसकी भी सचाई स्वीकार कर ली गई है। देवी, देवता, सिद्ध, वेताल, अप्सरा, चामुण्डायें अब उपहास की बात नहीं रह गई हैं और न ऋद्धि-सिद्धियाँ कल्पना की उड़ान है। जीव अत्यन्त शक्तिवाला है वह अनेक अलौकिकताओं का पिता है, स्वेच्छा से वह देवी देवताओं का, छाया, पुरुषों को किस प्रकार किस विज्ञान से अपने वश में कर लेता है इन सब रहस्यों की जानकारी पाठक इन्हीं पंक्तियों में हर मास प्राप्त करते रहेंगे।

‘प्रारब्ध’ लेख माला-


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