मूर्खों से पराजय

October 1942

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(महात्मा शेखसादी)

अगर कोई बुद्धिमान मूर्खों के साथ किसी विषय पर वाद विवाद करे, तो उसे अपनी इज्जत की आशा त्याग देनी चाहिए। अगर कोई मूर्ख किसी अक्लमन्द को हरा दे तो आश्चर्य न करना चाहिए, क्योंकि मामूली पत्थर भी तो मोती को तोड़ डालता है। जिस समय एक ही पिंजरे में कोयल के साथ कौआ हो, उस समय यदि कोयल न गावे, तो आश्चर्य की क्या बात है? यदि कोई हरामजादा किसी बुद्धिमान पर जुल्म करे, तो बुद्धिमान को चाहिए कि कुपित और शोकार्तन हो। अगर एक निकम्मा पत्थर बेशकीमती सोने के प्याले को तोड़ दे, तो बेशकीमती सोने की कम कीमत न हो जायगी।

अगर कोई अक्लमन्द कमीनों की मंडली में पड़कर उन पर अपने उपदेशों का असर न डाल सके अथवा उनका प्रशंसा भाजन न बन सके, तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है? बीन की आवाज, ढोल की आवाज को दबा नहीं सकती, किन्तु बदबूदार लहसुन अम्बर की खुशबू को परास्त कर देता हैं। मूर्ख को अपनी ऊँची आवाज का घमण्ड हुआ, क्योंकि उसने गुस्ताखी से एक अक्लमन्द को घबरा दिया।

अगर एक रत्न कीचड़ में गिर पड़े, तो भी वह वैसा ही नफीस बना रहता है और यदि गर्द आसमान घर चढ़ जावे, तो भी अपनी असली नीचता को नहीं छोड़ता। लियाकत बिना तालीम के और तालीम बिना लियाकत के बेकार है। शक्कर की कीमत गन्ने से नहीं हैं, किन्तु उसकी अपनी खासियत से है। कस्तूरी वह है, जो आप खुशबू दे न कि अत्तार के कहने से। अक्लमन्द अत्तार के डिब्बे के समान है, जो चुप रहता हैं, लेकिन गुण दिखाता है, मूर्ख नट के ढोल के समान है, जो शोर बहुत करता है, पर भीतर से पोला है। अन्धों के बीच सुन्दरी कन्या और काफिरों के घर में कुरान की जो गति होती, वही गति बुद्धिमान की मूर्खों में होती है।


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