VigyapanSuchana

October 1942

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दुनिया खौलते कढ़ाव में उबल रही है!

चारों ओर हाहाकारी ज्वाला जल रही हैं, खून के दरिया वह रहे हैं, महामारी का ताण्डव हो रहा है; रहे बचे भूख ही ज्वाला में जले जा रहें है। हर आदमी आगामी कल को सशंकित और भयभीत नेत्रों से देख रहा है। न जाने भविष्य का निष्ठुर दानव किस पर क्या कहर ढा दे, इस आशंका से मनुष्यों के कलेजे धक-धक कर रहे हैं।

यह निष्ठुर परिस्थिति क्यों उत्पन्न हुई?

आगामी घड़ियों में क्या होने वाला है! कितने दिन अभी क्या कष्ट सहने होंगे? इस खूनी तूफान का अन्त कैसे होगा? इन सब महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर आध्यात्मिक महापुरुषों को दिव्य-दृष्टि से प्राप्त हुआ है।

उसको सर्व साधारण पर प्रकट करने के लिए -

‘अखंड-ज्योति’ का महत्वपूर्ण विशेषाँक 1 जनवरी 43 को प्रकाशित होगा!

“संवत् 2000 अंक”

इस विशेषाँक की एक-एक पंक्ति पढ़ने योग्य, समझने योग्य और मनन करने योग्य होगी। यह अंक अपूर्व और अद्भुत गुप्त बातों की जानकारियों से परिपूर्ण होगा। विचारवान् व्यक्तियों के लिए यह अंक प्राण-प्रिय हुए बिना न रहेगा।

कागज के इस घोर अकाल में पृष्ठ संख्या थोड़ी ही बढ़ाई जा सकेगी, साधारण अंक से यह सवा या ड्यौढ़ा ही होगा, पर इतने ही पृष्ठों के अन्दर गागर में सागर भर दिया जायगा।

1 जनवरी सन् 1943 की उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा कीजिए!

मैनेजर-’अखण्ड-ज्योति’ मथुरा।

देवेन मनसा सह

-श्रुति

दिव्य मन के साथ रहा कीजिए

क्या आप इस संसार में सर्व श्रेष्ठ मित्र खोज रहें हैं?

-यदि हाँ; तो-

अपने मन को दिव्य-निष्पाप बना लीजिए, वही सर्व श्रेष्ठ मित्र है।


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